सुभाष चंद्र बॉस रक्तदाता (ब्लड डोनर)सम्मान पत्र

नाम : राजेंद्र कुमार सिंह
ब्लड ग्रुप : O+VE
डोनर : 24/06/2018
मो : 9876543210
निवास : 10 मैन रोड बस स्टेण्ड
नगर : नगर पालिका झारसुगुड़ा
ज़िला : झारसुगुड़ा
राज्य : उड़ीसा
सम्मान पत्र :

श्री राजेंद्र कुमार सिंह  जी ने रक्तदान का संकल्प लेकर जरूरतमंद पेशेंट को अपना रक् उपलब्ध कराते हैं आपके रक्त के कारण बहुत जाने बची हैं ऐसे रक्तवीर ब्लड डोनर को संस्था सलाम करती है तथा सामाजिक कार्यों के प्रति रूचि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के प्रचार प्रसार में संस्था को दिया गया सहयोग किया देश के महान क्रांतिकारियों की जीवनी जन जन तक पहुंचने हेतु संस्था रक्तदाता को सुभाष चंद्र बोस रक्तदाता (ब्लड डोनर) सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है संस्था आपके इस कार्य को नमन करती है रक्तदान महादान  : मेहनाज़ अंसारी 

विवरण :

introduction

Rajendra Kumar Singh

Blood Group: O + VE

No ward 10 Man Road Bus Stand

Municipality Jharsuguda

Orissa

Mob 9 876543210

 

जन्मभूमि झारसुगुडा के बारे में

झारसुगुडा भारत के ओडिशा राज्य के झारसुगुडा जिले में एक शहर है।

झारसुगुडा पिन कोड 768201 है और डाक हेड ऑफिस झारसुगुडा है।

झारसुगुडा में चौकी पैरा, ओएमपी, सरबाहल, झर्मुंडा, दल्की कुछ इलाके हैं। झारसुगुडा पूर्व में किर्मिरा तहसील से पूर्व, सुंदरगढ़ तहसील उत्तर की तरफ, कोलाबीरा तहसील पूर्व की ओर, दक्षिण में रांगुली तहसील से घिरा हुआ है।

झारसुगुडा, ब्राजराजनगर, बेलपाहर, सुंदरगढ़ झारसुगुडा के नजदीकी शहर हैं।

झारसुगुडा की जनसांख्यिकी

 

उडिया यहां स्थानीय भाषा है।

झारसुगुडा में राजनीति

बीजेपी, बीजेडी, आईएनसी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।

झारसुगुडा के पास मतदान केंद्र / बूथ

1) रामचिपिधि सेवश्रम

2) रामकृष्ण विद्या पिथा कालीमंदिर (पूर्व)

3) बुतुली परियोजना ऊपरी प्राथमिक विद्यालय

4) सेंट्रल स्कूल झारसुगुडा (पूर्व)

5) चौकीपाडा परियोजना ऊपरी प्राथमिक विद्यालय (ओं)

झारसुगुडा कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

झारसुगुडा जेएन रेल वे स्टेशन, ब्रुंडमल रेल वे स्टेशन झारसुगुडा के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। झारसुगुडा के पास रायगढ़ रेलवे स्टेशन 73 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

शहरों के नजदीक

झारसुगुडा 0 किलोमीटर निकट है

ब्राजराजनगर 13 किलोमीटर दूर

बेलपाहर 1 9 किलोमीटर के पास

सुंदरगढ़ 31 किलोमीटर दूर है

 

तालुक के पास

झारसुगुडा 4 किलोमीटर निकट है

किर्मिरा 13 किमी निकट

सुंदरगढ़ 20 किलोमीटर दूर है

कोलाबीरा 21 किलोमीटर दूर है

 

एयर पोर्ट्स के पास

रांची हवाई अड्डे के पास 234 किमी

रायपुर हवाई अड्डे के पास 277 किमी

भुवनेश्वर हवाई अड्डे के पास 2 9 0 किलोमीटर दूर है

गया हवाई अड्डे 373 किमी निकट

 

पर्यटक स्थलों के पास

हिरकूद 43 किमी निकट

संबलपुर 50 किमी निकट

रायगढ़ 71 किलोमीटर दूर है

Simdega 107 किमी निकट

राउरकेला 110 किमी निकट

 

जिलों के पास

झारसुगुडा 0 किलोमीटर निकट है

सुंदरगढ़ 30 किलोमीटर दूर है

संबलपुर 47 किमी निकट

रायगढ़ 72 किलोमीटर दूर है

 

रेलवे स्टेशन के पास

झारसुगुडा जेएन रेल वे स्टेशन 0.8 किलोमीटर दूर है

ब्रुंडामल रेल वे स्टेशन 8.3 किलोमीटर दूर है

धुत्रा रेल वे स्टेशन 9.3 किलोमीटर दूर है

ब्राजराजनगर रेल मार्ग स्टेशन 12 किलोमीटर दूर है

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जीवनी
स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस – Netaji Subhash Chandra Bose का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे। “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा” सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध नारा था। उन्होंने अपने स्वतंत्रता अभियान में बहोत से प्रेरणादायक भाषण दिये और भारत के लोगो को आज़ादी के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी। सुभाषचंद्र बोस की जीवनी / About Netaji Subhash Chandra Bose In Hindi पूरा नाम – सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस जन्म – 23 जनवरी 1897 जन्मस्थान – कटक (ओरिसा) पिता – जानकीनाथ माता – प्रभावती देवी शिक्षा – 1919 में बी.ए. 1920 में आय.सी.एस. परिक्षा उत्तीर्ण। सुभास चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। जिनकी निडर देशभक्ति ने उन्हें देश का हीरो बनाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। बाद में सम्माननीय नेताजी ने पहले जर्मनी की सहायता लेते हुए जर्मन में ही विशेष भारतीय सैनिक कार्यालय की स्थापना बर्लिन में 1942 के प्रारम्भ में की, जिसका 1990 में भी उपयोग किया गया था। शुरू में 1920 के अंत ने बीसे राष्ट्रिय युवा कांग्रेस के उग्र नेता थे एवं 1938 और 1939 को वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। लेकिन बाद में कुछ समय बाद ही 1939 में उन्हें महात्मा गांधी / Mahatma Gandhi से चल से विवाद के कारण अपने पद को छोडना पड़ा। लेकिन 1940 में भारत छोड़ने से पहले ही उन्हें ब्रिटिश ने अपने गिरफ्त में कर लिया था। अप्रैल 1941 को बोस को जर्मनी लाया गया। जहा उन्हें भारतीय स्वतंत्रता अभियान की बागडोर संभाली, और भारत को आजादी दिलाने के लिये लोगो को एकजुट करने लगे और एकता के सूत्र में बांधने लगे। नवंबर 1941 में, जर्मन पैसो से ही उन्होंने बर्लिन में इंडिया सेंटर की स्थापना की और कुछ ही दिनों बाद फ्री इंडिया रेडियो की भी स्थापना की, जिसपर रोज़ रात को बोस अपना कार्यक्रम किया करते। तक़रीबन 3000 मजबुत स्वयं सेवी सैनिको ने इरविन रोमेल्स द्वारा हथियाए अफ्रीका कॉर्प्स को अपने कब्जे में किया। बाद में सुभाषचंद्र बोस को जर्मन से बहोत सहायता मिली और उन्होंने भारत की खोज के लिये जर्मन जमीन का भी उपयोग किया। इसी दौरान बोस पिता भी बने, उनकी पत्नी और सहयोगी एमिली स्किनल, जिनसे वे 1934 में मिले थे। उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। 1942 की बसंत से, जापानियों ने दक्षिणी एशिया को हथिया लिया था और वे जर्मन प्राथमिकताओं को बदलने लगे थे। बाद में भारत पर हुआ जर्मन हमला असहनीय बनता गया। इसे देखते हुए सुभाषचंद्र बोस ने दक्षिणी एशिया जाने का निर्णय लिया। अडोल्फ़ हिटलर उसी समय 1942 के अंत में बोस से मिले थे। और उन्होंने भी सुभाषचंद्र बोस को दक्षिणी एशिया जाने की सलाह दी और पनडुब्बी लेने की भी सलाह दी। बोस ने अच्छी तरह से एक्सिस ताकत को जान लिया था और खेदसूचक ढंग से वह ज्यादा देर तक नही टिक पाई। फेब्रुअरी 1943 में सुभाषचंद्र बोस जर्मन पनडुब्बियों पर पहुचें। मैडागास्कर में, उन्हें जापानीज पनडुब्बी में स्थानांतरित किया गया। जहा मई 1943 में वे जापानीज स्थान सुमात्रा में उतरे। जापानियों की सहायता से ही सुभाष चंद्र बोस – Subhash Chandra Bose ने इंडियन नेशनल आर्मी (INA) का पुनर्निर्माण किया। जिसमे ब्रिटिश इंडियन आर्मी के भारतीय सैनिक भी शामिल थे। जिन्होंने सिंगापुर युद्ध में महान कार्य किया था। इस तरह बोस के आने से मलैया और सिंगापुर में भारतीय नागरीकों की संख्या बढ़ने लगी। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में जापानीज भारतीय सरकार को विभिन्न क्षेत्रो में सहायता करने के लिये राजी हुए। जैसे की उन्होंने बर्मा की सहायता की थी। और साथ ही जैसा साथ उन्होंने फिलीपींस और मांचुकुओ का दिया था। उन्होंने भारत की अस्थाई सरकार, जिसे बोस प्रतिपादित कर रहे थे, की स्थापना जापानीयो के साथ मिलकर अंडमान और निकबर में की। सुभाषचंद्र बोस अच्छी तरह से अपनी सेना का नेतृत्व कर रहे थे – उनमे काफी करिश्माई ताकत समायी थी। इसी के चलते उन्होंने प्रसिद्ध भारतीय नारे “जय हिन्द” की घोषणा की। और उसे अपनी आर्मी का नारा बनाया। उनकें नेतृत्व में निर्मित इंडियन नेशनल आर्मी एकता और समाजसेवा की भावना से बनी थी। उनकी सेना में भेदभाव और धर्मभेद की जरा भी भावना नही थी। इसे देखते हुए जापानियों ने बोस को अकुशल सैनिक बताया। और इसी वजह से वे अपनी आर्मी को ज्यादा समय तक नही टिका पाये। 1944 के अंत में और 1945 के प्रारम्भ में ब्रिटिश इंडियन आर्मी पहले तो रुकी थी लेकिन बाद में उन्होंने पुनः भारत पर आक्रमण किया। जिसमे लगभग आधी जापानी शक्ति और इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल आधे जापानी सैनिक मारे गए। बाद में इंडियन नेशनल आर्मी मलय पेनिनसुला गयी जहा सिंगापुर में उन्हें देखा गया था और उन्होंने स्वयं ही खुद को जापानियों के हवाले कर दिया था। बोस ने पहले जापानियों के डर से आत्मसमपर्ण का निर्णय नही लिया था। बल्कि उन्होंने भागकर मंचूरिया जाने की बजाये सोवियत संघ के भविष्य के लिये आत्मसमर्पण करने की ठानी। ताइवान में हुए विमान अपघात में उनकी मृत्यु हो गयी थी। लेकिन आज भी बहोत से भारतीयो को इस बात पर विश्वास नही की उनका विमान हादसा वास्तव में हुआ था भी या नही। उस समय हादसे के बाद भी भारतीय बंगाल प्रान्त के लोगो को भरोसा था की बोस भारत की आजादी के लिये दोबारा आएंगे। रंगून के ‘जुबली हॉल’ में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया वह भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया। जिसमें उन्होंने कहा था कि- “स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है। किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल चढ़ा देने वाले पागल पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है। जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता देवी को भेट चढ़ा सकें। “तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।” इस वाक्य के जवाब में नौजवानों ने कहा – “हम अपना ख़ून देंगे” उन्होंने आईएनए को ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी दिया। सुभाष भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वे भारत की अमूल्य निधि थे। ‘जय हिन्द’ का नारा और अभिवादन उन्हीं की देन है। सुभाष चंद्र बोस के ये घोषवाक्य आज भी हमें रोमांचित करते है। यही एक वाक्य सिद्ध करता है कि जिस व्यक्तित्व ने इसे देश हित में सबके सामने रखा वह किस जीवन का व्यक्ति होगा। ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर इतने वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी रहस्य छाया हुआ है। सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हवाई दुर्घटना में मानी जाती है। समय गुजरने के साथ ही भारत में भी अधिकांश लोग ये मानते है कि नेताजी की मौत ताईपे में विमान हादसे में हुई। कहा जाता है की 18 अगस्त 1945 को यह हादसा ताइवान में हुआ था। लेकिन फिर भी बहोत से लोगो को इस बात पर भरोसा नही था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस सर्वकालिक नेता थे, जिनकी ज़रूरत कल थी। आज है और आने वाले कल में भी होगी। वह ऐसे वीर सैनिक थे, इतिहास जिनकी गाथा गाता रहेगा। उनके विचार, कर्म और आदर्श अपना कर राष्ट्र वह सब कुछ हासिल कर सकता है, जिसका वह हक़दार है। सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता समर के अमर सेनानी, मां भारती के सच्चे सपूत थे। नेताजी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक थे। जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है। उनमें नेतृत्व के चमत्कारिक गुण थे। जिनके बल पर उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान संभाल कर अंग्रेज़ों को भारत से निकाल बाहर करने के लिए एक मज़बूत सशस्त्र प्रतिरोध खड़ा करने में सफलता हासिल की थी। नेताजी के जीवन से यह भी सीखने को मिलता है कि हम देश सेवा से ही जन्मदायिनी मिट्टी का कर्ज़ उतार सकते हैं। उन्होंने अपने परिवार के बारे में न सोचकर पूरे देश के बारे में सोचा। नेताजी के जीवन के कई और पहलू हमे एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे एक सफल संगठनकर्ता थे। उनकी बोलने की शैली में जादू था और उन्होंने देश से बाहर रहकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ चलाया। नेताजी मतभेद होने के बावज़ूद भी अपने साथियो का मान सम्मान रखते थे। उनकी व्यापक सोच आज की राजनीति के लिए भी सोचनीय विषय है। एक नजर में सुभाषचंद्र बोस का इतिहास 1) 1921 में सुभाषचंद्र बोस / Subhash Chandra Bose इन्होंने सरकारी नोकरी में बहोत उच्च स्थान का त्याग करके राष्ट्रीय स्वातंत्र के आंदोलन में कुद पडे। स्वातंत्र लढाई में हिस्सा लेने के लिये अपनी नौकरी का इस्तीफा देणे वाले वो पहले आय.सी.एस. अधिकारी थे। 2) 1924 में कोलकत्ता महानगर पालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में उनको चित्तरंजन दास इन्होंने चुना। पर इसी स्थान होकर और कौनसा भी सबुत न होकर अंग्रेज सरकार ने क्रांतीकारोयों के साथ सबंध रखा ये इल्जाम लगाकर उन्हें गिरफ्तार मंडाले के जेल में भेजा गया। 3) 1927 में सुभाषचंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू इन दो युवा नेताओं को कॉंग्रेस के महासचिव के रूप में चुना गया। इस चुनाव के वजह से देशके युवाओं में बड़ी चेतना बढ़ी। 4) सुभाषचंद्र बोस इन्होंने समझौते के स्वातंत्र के अलावा पुरे स्वातंत्र की मांग कॉंग्रेस ने ब्रिटिशों से करनी चाहिये। ऐसा आग्रह किया। 1929 के लाहोर अधिवेशन में कॉंग्रेस ने पूरा स्वातंत्र का संकल्प पारित किया। ये संकल्प पारित होने में सुभाषचंद्र बोस इन्होंने बहोत प्रयास किये। 5) 1938 में सुभाषचंद्र बोस हरिपुरा कॉंग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष बने। 6) 1939 में त्रिपुरा यहा हुये कॉंग्रेस के अधिवेशन में वो गांधीजी के उमेदवार डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या इनको घर दिलाकर चुनकर आये। पर गांधीजी के अनुयायी उनको सहकार्य नहीं करते थे। तब उन्होंने उस स्थान का इस्तीफा दिया और ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ ये नया पक्ष स्थापन किया। 7) इंग्लंड दुसरे महायुध्द में फसा हुवा है। इस स्थिति का लाभ लेकर स्वातंत्र के लिए भारत ने सशस्त्र लढाई करनी चाहिए’ ऐसा प्रचार वो करते थे। इस वजह से अंग्रेज सरकार का उनके उपर का गुस्सा बढ़ा। सरकारने उन्हें जेल में डाला पर उनकी तबियत खराब होने के वजह से उन्हें घर पर ही नजर कैद में रखा। 15 जनवरी १९४१ में सुभाषबाबू भेस बदलकर अग्रेजोंके चंगुल से भाग गये। काबुल के रास्ते से जर्मनी की राजधानी बर्लिन यहा गये। 8) भारत के स्वातंत्र लढाई के लिये सुभाषबाबू ने हिटलर के साथ बातचीत की। जर्मनी में ‘आझाद हिंद रेडिओ केंद्र’ शुरु किया। इस केंद्र से अंग्रेज के विरोध में राष्ट्रव्यापी संकल्प करने का संदेश वो भारतीयोंको देने लगे। 9) जर्मनी में रहकर भारतीय स्वतंत्र के लिये हम कुछ महत्वपूर्ण रूप की कृति कर सकेंगे। ऐसा ध्यान में आतेही सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से एक पनडुब्बी से जपान गये। रासबिहारी बोस ये भारतीय क्रांतिकारी उस समय जपान में रहते थे। उन्होंने मलेशिया, सिंगापूर, म्यानमार आदी। पूर्व आशियायी देशों में के भारतीयोका ‘इंडियन इंडिपेंडेंट लीग‘ (हिंदी स्वातंत्र संघ) स्थापन किया हुवा था। जपान इ हिंदी के हाथ में आये हुये अंग्रेजो के लष्कर में के हिंदी सैनिकोकी ‘आझाद हिंद सेना’ उन्होंने संघटित की थी। उसका नेतृत्व स्वीकार करने की सुभाषबाबू को रासबिहारी बोस ने उन्होंने आवेदन किया। नेताजीने वो आवेदन स्वीकार किया। इस तरह सुभाषचंद्र बोस आझाद हिंद सेने के सरसेनापती बने। 10) 1943 में अक्तुबर महीने में सुभाषबाबू के अध्यक्षता में ‘आझाद हिंद सरकार’ की स्थापना हुयी। अंदमान और निकोबार इन व्दिपो कब्जा कटके आझाद हिंद सरकार ने वहा तिरंगा लहरा दिया। अंदमान को ‘शहीद व्दिप’ और निकोबार को ‘स्वराज्य व्दिप’ ऐसे नाम दिये। जगन्नाथराव भोसले, शहनवाझ खान, प्रेम कुमार सहगल, डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन आदी उनके पास के साथी थे। डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन ये ‘झाशी की राणी’ पथक के प्रमुख थी। ‘तिरंगा झेंडा’ ये आझाद हिंद सेन का निशान ‘जयहिंद’ ये अभिवादन के शब्द, ‘चलो दिल्ली’ ये घोष वाक्य और ‘कदम कदम बढाये जा’ ये समरगित था। इसी सेना ने 1943 से 1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों से युध्द किया था तथा उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्रदान कर देने के विषय में सोचने को मजबूर किया। 11) जपान सरकार के निवेदन के अनुसार सुभाषचंद्र बोस एक विमान से टोकियो जाने के लिये निकले उस विमान को फोर्मोसा मतलब ताइहोकू व्दिप के हवाई अड्डे के पास दुर्घटना हुयी। इस दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को नैताजी की मृत्यु हो गयी। बचपन से ही सुभाष में राष्ट्रीयता के लक्षण प्रकट होने लगे थे और निस्वार्थ सेवा भावना उनके चरित्र की विशेषता थी। इन सभी उदात्त प्रवुत्तियों से ही उनके क्रांतिकारी पर उदार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ था। पुरस्कार: भारत सरकार ने 1992 में सुभाषबाबू को ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च सम्मान की घोषणा की गयी लेकिन बोस परिवार वालोने वो स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। मृत्यु - 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में सुभाषबाबू की मौत हुयी। Subhash Chandra Bose भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते है। वे भारत की अमूल्य निधि थे। ‘जयहिन्द’ का नारा और अभिवादन उन्ही की देंन है। उनकी प्रसिध्द पंक्तियाँ है – “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हेँ आजादी