नाम : | डॉ. राजेंद्र प्रसाद |
पद : | राष्ट्रपति भारत |
कार्यकाल : | 26 January 1950 to 13 May 1962 |
समर्थित : | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
उपलब्धि : |
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परिचय :
भारत के महामहिम राष्ट्रपति राष्ट्र के प्रमुख और भारत के प्रथम नागरिक होते हैं। ‘राष्ट्रपति’ भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। राष्ट्रपति भारत की सशस्त्र सेनाओं (थलसेना, नौसेना एवं वायुसेना) के सर्वोच्च सेनानायक भी होते हैं। भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा, राज्यसभा एवं विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। और वे अभी तक पहले व एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने दो कार्यकाल पूरे किये हैं। श्रीमती प्रतिभा पाटिल भारत की 12 वीं तथा प्रथम महिला राष्ट्रपति थीं। भारत के राष्ट्रपति का निवास नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन है जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में श्री रामनाथ कोविंद भारत के राष्ट्रपति हैं, उन्होंने 25 जुलाई 2017 को पद व गोपनीयता की शपथ ली। प्रथम भारत के राष्ट्रपति कार्यकाल २६ जनवरी १९५० – 14 मई 1962 प्रधान मंत्रीपण्डित जवाहर लाल नेहरू उपराष्ट्रपतिसर्वपल्ली राधाकृष्णन पूर्व अधिकारीस्थिति की स्थापना चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल के रूप में उत्तराधिकारीसर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्म3 दिसम्बर 1884 जीरादेई, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (अब बिहार में) मृत्यु28 फ़रवरी 1963 (उम्र 78) पटना, बिहार, भारत राष्ट्रीयताभारतीय राजनैतिक पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जीवन संगीराजवंशी देवी (मृत्यु १९६२) विद्या अर्जनकलकत्ता विश्वविद्यालय धर्महिन्दू राजेंद्र प्रसाद एक स्वतंत्रता सेनानी थे वह भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। वे बिहार राज्य से थे। वे लगातार दो बार 1952 और 1957 के चुनावों में राष्ट्रपति चुने गए। वे इकलौते ऐसे राष्ट्रपति हैं जोकि दो बार राष्ट्रपति चुने गए। जन्म: 3 दिसंबर, 1884 निधन: 28 फरवरी, 1963 उपलब्धियां: स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति, संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह उस संविधान सभा के अध्यक्ष थे जिसने संविधान की रूप रेखा तैयार की। उन्होंने कुछ समय के लिए स्वतन्त्र भारत की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप भी में सेवा की थी। राजेन्द्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रारंभिक जीवन डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। राजेन्द्र प्रसाद अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। महादेव सहाय फारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपनी माँ और बड़े भाई से काफी लगाव था। पांच वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद को उनके समुदाय की एक प्रथा के अनुसार उन्हें एक मौलवी के सुपुर्द कर दिया गया जिसने उन्हें फ़ारसी सिखाई। बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित सिखाई गयी। मात्र 12 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया। राजेंद्र प्रसाद एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उन्हें 30 रूपए मासिक छात्रवृत्ति दिया गया। वर्ष 1902 में उन्होंने प्रसिद्ध कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ उनके शिक्षकों में महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस और माननीय प्रफुल्ल चन्द्र रॉय शामिल थे। बाद में उन्होंने विज्ञान से हटकर कला के क्षेत्र में एम ए और कानून में मास्टर्स की शिक्षा पूरी की। इसी बीच, वर्ष 1905 में अपने बड़े भाई महेंद्र के कहने पर राजेंद्र प्रसाद स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए। वह सतीश चन्द्र मुख़र्जी और बहन निवेदिता द्वारा संचालित ‘डॉन सोसाइटी’ से भी जुड़े। राजनैतिक जीवन भारतीय राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को काफी प्रभावित किया। जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजने के मिशन पर थे तब उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिए कहा। गांधीजी ने जो समर्पण, विश्वास और साहस का प्रदर्शन किया उससे डॉ. राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावित हुए। गांधीजी के प्रभाव से डॉ. राजेंद्र प्रसाद का दृष्टिकोण ही बदल गया। उन्होंने अपने जीवन को साधारण बनाने के लिए अपने सेवकों की संख्या कम कर दी। उन्होंने अपने दैनिक कामकाज जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन साफ़ करना खुद शुरू कर दिया जिसे वह पहले दूसरों से करवाते थे। गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद को 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया तब वह जेल में थे। जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए। वायसराय के तरफ से भी इस आपदा के लिए धन एकत्रित किया। राजेंद्र प्रसाद ने तब तक तीस लाख अस्सी हजार राशि एकत्रित कर ली थी और वायसराय इस राशि का केवलएक तिहाई हिस्सा ही जुटा पाये। राहत का कार्य जिस तरह से व्यवस्थित किया गया था उसने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कौशल को साबित किया। इसके तुरंत बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुना गया। उन्हें 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। आज़ादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतन्त्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मित्रता बढ़ाने के इरादे से कई देशों का दौरा किया और नए रिश्ते स्थापित करने की मांग की। राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताये। 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया।गया। |