स्वतंत्र भारत के माननीय प्रधानमंत्री परिचय सूची

नाम : श्री राजीव गान्धी
पद : मा. प्रधानमंत्री भारत सरकार
कार्यकाल : 31 अक्टूबर, 1984 - 2 दिसम्बर, 1989
पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
चुनाव : अमेठी, उत्तर प्रदेश
परिचय :
भारत के सातवें प्रधानमंत्री
कार्यकाल
३१ अक्टूबर १९८४ – २ दिसम्बर १९८९
पूर्ववर्तीइन्दिरा गांधी
परवर्तीविश्वनाथ प्रताप सिंह
जन्म२० अगस्त १९४४
मुम्बई, महाराष्ट्र
मृत्यु२१ मई १९९१
श्रीपेरंबदूर चेन्नइ (तत्कालीन मद्रास) 
राष्ट्रियताभारतीय
राजनैतिक दलभारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
जीवन संगीसोनिया गांधी
Religionहिन्दू
संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद ही राजीव गांधी – Rajiv Gandhi भारत राजनीती में आए. इससे पहले वे इंडियन एयरलाइन्स में विमान चालक थे.
1981 में उन्होंने अमेठी में संसद सदस्य का चुनाव जीता और सन 1983 वे काँग्रेस पार्टी के महासचिव नियुक्त हुये. 31 अक्तुबर, 1984 के दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद उन्होंने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
1985 के आम चुनाव में प्रचंड जनमत प्राप्त कर उन्होंने विधिवत् प्रधानमंत्री का पदभार संभाला.
1985 के आम चुनावों में मिले प्रचंड बहुमत के पीछे जनता जनार्दन की सहानुभूति एक महत्वपूर्ण कारण तो थी ही, मगर प्रधानमंत्री के पद पर राजीव गांधी के आरोहण का एक अन्य मुख्य कारण विभिन्न मसलो पर उनका आधुनिक दृष्टिकोण और युवा उत्साह था.
भारतीय लोकतंत्र को सत्ता के दलालों से मुक्त कराने की बात कहने वाले वे पहले प्रधानमंत्री थे. भ्रष्ट नौकरशाही को भी उन्होंने आड़े हाथो लिया. उन्होंने ही सबसे पहले देश को एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में इक्कीसवी सदी के ओर’ले जाने का नारा देकर जनमानस में नई आशाएं जगाई.
प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने नई शिक्षा नीती की घोषणा की.देश के औद्योगिक विकास के लिए तरह – तरह के आयोग गठित हुए. विज्ञान और प्रौद्योगिकी को नई गती और दिशा देने के लिए प्रयास तेज किये गये और देश में पहली बार ‘टेक्नोलॉजी मिशन’ एक संस्थागत प्रणाली के रूप में अस्तित्व में आया. राजीव गांधी के पहल पर हुए ऐतिहासिक पंजाब, आसाम, मिझोरम समझौतों के उनकी राजनितिक सूझ – बुझ का परिचय दिया.देश की राजनीती में ये समझौते महत्वपूर्ण पड़ाव थे.
उधर अंतरराष्ट्रीय क्षितिज में भी राजीव गांधी एक सशक्त और कुशल राजनेता के रूप में उभरे. अपने शासनकाल में उन्होंने कई देशो की यात्रा की और उनसे भारत के राजनयिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध बढाए. 
1986 में गुट – निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व भारत के पास आनेपर कई अंतरराष्ट्रीय मसलो पर स्पष्ट और बेबाक नीती देकर राजीव गांधी ने भारत को एक सम्मानजनक स्थान दिलाया. फिलिस्तीनी संघर्ष, रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ़्रीकी लोगों के संघर्ष, स्वापो आंदोलन, नामीबिया की स्वतंत्रता के समर्थन तथा अफ़्रीकी देशो की सहायता के लिए अफ्रीका फंड की स्थापना में भारत की पहल आधुनिक विश्व इतिहास का स्वर्णिम दस्तावेज बन गई है.
राजीव गांधी ने माले में हुए विद्रोह को दबाकर और श्रीलंका की जातीय समस्या के निदान के लिए स्वतंत्र पहल पर समझौता कर हिंद महासागर में अमरीका, पाक तथा अन्य देशो के बढ़ते सामरिक हस्तक्षेप पर अंकुश तो लगाया ही, साथ ही विश्व को यह भी अहसास करा दिया की भारत इस क्षेत्र में एक महती शक्ति है, जिसे विश्व की कोई भी ताकत अनदेखा नहीं कर सकती. इससे विश्व राजनीती में भारत की एक विशिष्ट पहचान बनी. साथ-साथ राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुए.
मगर प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम दो वर्षों में अपने निजी सलाहकारों की कारगुजारियो की वजह से राजीव गांधी कुछ ऐसे विवादों से आ घिरे, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा. ‘मिस्टर क्लीन’ की उनकी छवि भी धूमिल हुई. वे कड़ी आलोचना का केंद्र बन गये और परिणामत: सन 1989 के आम चुनावों में उनकी पार्टी पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी.
1991 के चुनावों में जनता उन्हें फिर से बहुमत से विजयी बनाएगी. इस विश्वास और जनता से मिले समर्थन – स्नेह से अभिभूत हो राजीव गांधी ने अपने सुरक्षा का घेरा भी तोड दिया. मगर विधी की विडम्बना देखिये की जानता से उनकी करीबी ही उनकी जान ले बैठी.
21 मई, 1991 को मद्रास से 50 किमी. दूर स्थित श्री पेरुंबुदुर में एक चुनाव सभा में लोगों से हार लेते समय श्री गांधी एक भयंकर बम विस्फोट का शिकार हो गये. इस सुनियोजित षडयंत्र ने देश की राजनीती से एक युवा युग और आकांक्षा का हमेशा के लिए पटाक्षेप कर दिया जिसने भारतीय ही नहीं पुरे विश्व जनमानस को भीतर तक झकझोर कर रख दिया.
सबसे कम उम्र में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बनने का गौरव पाने वाले राजीव गांधी का व्यक्तित्व सज्जनता, मित्रता और प्रगतिशीलता का प्रतिक था. राजनैतिक क्षितिज में उनका उदय अप्रत्याशित तो अवश्य था.
परन्तु इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री का भर अपने युवा कंधो पर लेते ही राजीव गांधी ने साहसिक कदम उठाकर और ज्वलंत समस्याओं के प्रति स्पष्ट दृष्टीकोण अपनाकर अपनी छवि एक विवेकशील और गतिशील राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित की. उनकी स्पष्ट वादिता और आधुनिक विचारों ने उन्हें शीघ्र ही ‘मिस्टर क्लीन’ की संज्ञा दी.
लगभग एक दशक के छोटेसे राजनैतिक जीवन में राजीव गांधी ने एक अमिट छाप छोड़कर अपने देश भारत से हमेशा के लिए विदा हो गये, भारत सरकार ने देश के इस दिवंगत नेता को सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ से विभूषित कर यथेष्ट श्रद्धांजली दी है.
पुरस्कार – सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’
मृत्यु  – 21 May 1991 को उनका निधन हुवा.
उपलब्धि :
उपलब्धि 
देश को राजीव गांधी के 5 बड़े योगदान राजीव गांधी ने अर्थव्यवस्था के सेक्टर्स;को खोला 1988 में की गई उनकी चीन यात्रा ऐतिहासिक राजीव ने;पंचायती राज& के लिए विशेष प्रयास किए
अगले दशक में होने वालीआईटी क्रांति की नीव;राजीव गांधी ने ही रखी.</मतदान उम्र सीमा18 साल की और&ईवीएम मशीनोंकी शुरुआत की
1984 में इंदिरा की हत्या के बाद देश में निराशा का माहौल था. लोग चाहते थे कि कोई उन्हें उस माहौल से निजात दिलाए. लोकसभा चुनाव के नतीजे ऐतिहासिक तौर पर कांग्रेस के पक्ष में आए. देश के लोगों ने नौजवान राजीव गांधी को इंदिरा का वारिस और अपना प्रधानमंत्री चुना और अगले पांच सालों में राजीव गांधी ने देश के लिए बहुत सारे फैसले लिए
इनमें कुछ सराहे गए. तो कुछ आज भी विवादास्पद हैं. शाहबानो केस और अयोध्या मसले की बात करें तो उसके लिए राजीव की आज भी आलोचना होती है. वहीं राजीव के कार्यकाल में हुआ बोफोर्स कांड आज भी कांग्रेस के पीछे साये की तरह घूमता नजर आता है
पहले उदारवादी
<p>मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब &lsquo;इंडिया आफ्टर गांधी&rsquo; में राजीव के हवाले से लिखा है, भारत लगातार नियंत्रण लागू करने के एक कुचक्र में फंस चुका है. नियंत्रण से भ्रष्टाचार और चीजों में देरी बढ़ती है. हमें इसको खत्म करना होगा</p>
<p>राजीव ने कुछ सेक्टर्स में सरकारी नियंत्रण को खत्म करने की कोशिश भी की. यह सब 1991 में बड़े पैमाने पर नियंत्रण और लाइसेंस राज के खात्मे की शुरुआत थी.</p>
<p>राजीव ने इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स घटाया, लाइसेंस सिस्टम सरल किया और कंप्यूटर, ड्रग और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से सरकारी नियंत्रण खत्म किया. साथ ही कस्टम ड्यूटी भी घटाई और निवेशकों को बढ़ावा दिया. बंद अर्थव्यवस्था को बाहरी दुनिया की खुली हवा महसूस करवाने का यह पहला मौका था. क्या उनको आर्थिक उदारवाद के शुरुआत का थोड़ा बहुत श्रेय नहीं मिलना चाहिए?</p>
<p>राजीव गांधी की नेशनल और इंटरनेशनल इमेज के लोग कद्रदान रहे
गिराई चीन की दीवार
राजीव गांधी ने दिसंबर 1988 में चीन की यात्रा की. यह एक ऐतिहासिक कदम था. इससे भारत के सबसे पेचीदा पड़ोसी माने जाने वाले चीन के साथ संबंध सामान्य होने में काफी मदद मिली. 1954 के बाद इस तरह की यह पहली यात्रा थी. सीमा विवादों के लिए चीन के साथ मिलकर बनाई गई ज्वाइंट वर्किंग कमेटी शांति की दिशा में एक ठोस कदम थी.
राजीव के चीनी प्रीमियर डेंग शियोपिंग के साथ खूब पटरी बैठती थी. कहा जाता है राजीव से 90 मिनट चली मुलाकात में डेंग ने उनसे कहा, तुम युवा हो, तुम्हीं भविष्य हो. अहम बात यह है कि डेंग कभी किसी विदेशी राजनेता से इतनी लंबी मुलाकात नहीं करते थे 
पावर लोगों के हाथ में हो
राजीव गांधी के;पावर टू द पीपल आइडिया को उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को लागू करवाने की दिशा में कदम बढ़ाकर लागू किया. कांग्रेस ने 1989 में एक प्रस्ताव पास कराकर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की दिशा में कोशिश की थी. 1990 के दशक में पंचायती राज वास्तविकता में सबके सामने आया
सत्ता के विकेंद्रीकरण के अलावा राजीव ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 1989 में 5 दिन काम का प्रावधान भी लागू किया. ग्रामीण बच्चों के लिए प्रसिद्ध नवोदय विद्यालयों के शुभारंभ का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है
वीं सदी का सपना
राजीव गांधी के भाषणों में हमेशा 21वीं सदी में प्रगति का जिक्र हुआ करता था. उन्हें विश्वास था कि इन बदलावों के लिए अकेले तकनीक ही सक्षम है. उन्होंने टेलीकॉम और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर्स में विशेष काम करवाया
सिक्के वाले फोन जो मोबाइल से चलते अब अतीत में बदल चुके हैं. राजीव को अगले दशक में होने वाली तकनीक क्रांति के बीज बोने का श्रेय भी जाता है. उनकी सरकार ने पूरी तरह असेंबल किए हुए मदरबोर्ड और प्रोसेसर लाने की अनुमति दी. इसकी वजह से कंप्यूटर सस्ते हुए. ऐसे ही सुधारों से नारायण मूर्ति और अजीम प्रेमजी जैसे लोगों को विश्वस्तरीय आईटी कंपनियां खोलने की प्रेरणा मिली.
युवाशक्ति की ताकत
मतदान उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 साल करने के राजीव के फैसले से 5 करोड़ युवा मतदाता और बढ़ गए. इस फैसले का कुछ विरोध भी हुआ
लेकिन राजीव को यकीन था कि राष्ट्र निर्माण के लिए युवाशक्ति का दोहन जरूरी है. ईवीएम मशीनों को चुनावों में शामिल करने समेत कई बड़े चुनाव सुधार किए गए. ईवीएम के जरिए उस दौर में बड़े पैमाने पर जारी चुनावी धांधलियों पर रोक लगी. आज के दौर में चुनाव बहुत हद तक निष्पक्ष होते हैं और इनमें ईवीएम मशीनों का बड़ा योगदान है.</p>
देश को राजीव गांधी के 5 बड़े योगदान
1-राजीव गांधी ने अर्थव्यवस्था के सेक्टर्स को खोला.
2-1988 में की गई उनकी चीन यात्रा ऐतिहासिक थी.
3-राजीव ने पंचायती राज के लिए विशेष प्रयास किए.
4-अगले दशक में होने वाली आईटी क्रांति की नीव राजीव गांधी ने ही रखी.
5-मतदान उम्र सीमा 18 साल की और ईवीएम मशीनों की शुरुआत की.
1984 में इंदिरा की हत्या के बाद देश में निराशा का माहौल था. लोग चाहते थे कि कोई उन्हें उस माहौल से निजात दिलाए. लोकसभा चुनाव के नतीजे ऐतिहासिक तौर पर कांग्रेस के पक्ष में आए. देश के लोगों ने नौजवान राजीव गांधी को इंदिरा का वारिस और अपना प्रधानमंत्री चुना और अगले पांच सालों में राजीव गांधी ने देश के लिए बहुत सारे फैसले लिए.
इनमें कुछ सराहे गए. तो कुछ आज भी विवादास्पद हैं. शाहबानो केस और अयोध्या मसले की बात करें तो उसके लिए राजीव की आज भी आलोचना होती है. वहीं राजीव के कार्यकाल में हुआ बोफोर्स कांड आज भी कांग्रेस के पीछे साये की तरह घूमता नजर आता है
पहले उदारवादी?
मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में राजीव के हवाले से लिखा है, भारत लगातार नियंत्रण लागू करने के एक कुचक्र में फंस चुका है. नियंत्रण से भ्रष्टाचार और चीजों में देरी बढ़ती है. हमें इसको खत्म करना होगा
राजीव ने कुछ सेक्टर्स में सरकारी नियंत्रण को खत्म करने की कोशिश भी की. यह सब 1991 में बड़े पैमाने पर नियंत्रण और लाइसेंस राज के खात्मे की शुरुआत थी.
राजीव ने इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स घटाया, लाइसेंस सिस्टम सरल किया और कंप्यूटर, ड्रग और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से सरकारी नियंत्रण खत्म किया. साथ ही कस्टम ड्यूटी भी घटाई और निवेशकों को बढ़ावा दिया. बंद अर्थव्यवस्था को बाहरी दुनिया की खुली हवा महसूस करवाने का यह पहला मौका था. क्या उनको आर्थिक उदारवाद के शुरुआत का थोड़ा बहुत श्रेय नहीं मिलना चाहिए?
राजीव गांधी की नेशनल और इंटरनेशनल इमेज के लोग कद्रदान रहे.
गिराई चीन की दीवार
राजीव गांधी ने दिसंबर 1988 में चीन की यात्रा की. यह एक ऐतिहासिक कदम था. इससे भारत के सबसे पेचीदा पड़ोसी माने जाने वाले चीन के साथ संबंध सामान्य होने में काफी मदद मिली. 1954 के बाद इस तरह की यह पहली यात्रा थी. सीमा विवादों के लिए चीन के साथ मिलकर बनाई गई ज्वाइंट वर्किंग कमेटी शांति की दिशा में एक ठोस कदम थी.
राजीव के चीनी प्रीमियर डेंग शियोपिंग के साथ खूब पटरी बैठती थी. कहा जाता है राजीव से 90 मिनट चली मुलाकात में डेंग ने उनसे कहा, तुम युवा हो, तुम्हीं भविष्य हो. अहम बात यह है कि डेंग कभी किसी विदेशी राजनेता से इतनी लंबी मुलाकात नहीं करते थे.
‘पावर लोगों के हाथ में हो’
राजीव गांधी के ‘पावर टू द पीपल’ आइडिया को उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को लागू करवाने की दिशा में कदम बढ़ाकर लागू किया. कांग्रेस ने 1989 में एक प्रस्ताव पास कराकर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की दिशा में कोशिश की थी. 1990 के दशक में पंचायती राज वास्तविकता में सबके सामने आया.
सत्ता के विकेंद्रीकरण के अलावा राजीव ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 1989 में 5 दिन काम का प्रावधान भी लागू किया. ग्रामीण बच्चों के लिए प्रसिद्ध नवोदय विद्यालयों के शुभारंभ का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है.
21 वीं सदी का सपना
राजीव गांधी के भाषणों में हमेशा 21वीं सदी में प्रगति का जिक्र हुआ करता था. उन्हें विश्वास था कि इन बदलावों के लिए अकेले तकनीक ही सक्षम है. उन्होंने टेलीकॉम और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर्स में विशेष काम करवाया.
सिक्के वाले फोन जो मोबाइल से चलते अब अतीत में बदल चुके हैं. राजीव को अगले दशक में होने वाली तकनीक क्रांति के बीज बोने का श्रेय भी जाता है. उनकी सरकार ने पूरी तरह असेंबल किए हुए मदरबोर्ड और प्रोसेसर लाने की अनुमति दी. इसकी वजह से कंप्यूटर सस्ते हुए. ऐसे ही सुधारों से नारायण मूर्ति और अजीम प्रेमजी जैसे लोगों को विश्वस्तरीय आईटी कंपनियां खोलने की प्रेरणा मिली.
युवाशक्ति की ताकत
मतदान उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 साल करने के राजीव के फैसले से 5 करोड़ युवा मतदाता और बढ़ गए. इस फैसले का कुछ विरोध भी हुआ.
लेकिन राजीव को यकीन था कि राष्ट्र निर्माण के लिए युवाशक्ति का दोहन जरूरी है. ईवीएम मशीनों को चुनावों में शामिल करने समेत कई बड़े चुनाव सुधार किए गए. ईवीएम के जरिए उस दौर में बड़े पैमाने पर जारी चुनावी धांधलियों पर रोक लगी. आज के दौर में चुनाव बहुत हद तक निष्पक्ष होते हैं और इनमें ईवीएम मशीनों का बड़ा योगदान है