शहीद भगत सिंह व्यापारी सम्मान पत्र

नाम : बसंत मडकाइकर
व्यापार : NA
प्रतिष्ठान : NA
क्षेत्र : वरकॉन्डेम
नगर : पांडा
ज़िला : नार्थ गोवा
राज्य : गोवा
सम्मान पत्र : NA
विवरण :
Shop Name  : Madkaikar Jewellers
Onwar Name :  Basant Madkaikar
Adress : F-4, First floor, Vinayaki Building, Varcondem, Ponda, Goa - 403401, Opposite Central Fire Station
Locality Name : Varcondem
Taluk Name : Ponda
District : North Goa 
State : Goa 
Language : Konkani and Marathi, Hindi, English & Portuguese 
Assembly constituency : Ponda assembly constituency 
Assembly MLA : Ravi Sitaram Naik 
Lok Sabha constituency : South Goa parliamentary constituency 
Parliament MP : Adv. Narendra Keshav Sawaikar 
 
पांडा के बारे में
पांडा गोवा राज्य, भारत के उत्तर गोवा जिले में पांडा तालुक में एक शहर है। यह जिला मुख्यालय पणजी से पूर्व की ओर 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक तालुक प्रमुख तिमाही है।
पांडा पिन कोड 403401 है और डाक हेड ऑफिस पोंडा है।
बांद्रारा (3 किमी), तलौलीम (4 किमी), बोरिम (4 किमी), वेलिंग-प्रिओल (4 किमी), कुर्का, बांबोलीम, तलौलीम (5 किलोमीटर) पांडा के पास के गांव हैं। पोंडा पश्चिम की तरफ तिस्वाड़ी तालुक से घिरा हुआ है, दक्षिण में मागाओ तालुक, दक्षिण की ओर मडगांव तालुक, साल्केटे तालुक दक्षिण की तरफ है।
गोवा वेल्हा, मागाओ, मडगांव, कर्कोरम कैकोरा पांडा के पास के शहर हैं।
यह स्थान उत्तर गोवा जिला और दक्षिण गोवा जिले की सीमा में है। दक्षिण गोवा जिला मार्गो इस जगह की ओर दक्षिण है। यह अरबी समुद्र के नजदीक है। मौसम में आर्द्रता का मौका है।
पांडा की जनसांख्यिकी
कोंकणी यहां स्थानीय भाषा है।
पांडा में राजनीति
मैग, बीजेपी, आईएनसी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।
पोंडा के पास मतदान केंद्र / बूथ
1) सरकारी हाई स्कूल नई बिल्डिंग ग्राउंड फ्लोर (वेस्ट विंग) शांतिनगर पांडा गोवा
2) सरकारी प्राथमिक विद्यालय (पूर्वी विंग) यशवंतनगर पांडा गोवा
3) सरकारी प्राथमिक विद्यालय (पश्चिम विंग) बाजार खंडपेर पांडा गोवा
4) सेंट। मैरी हाई स्कूल सिल्वानगर (मध्य विंग) पांडा गोवा
5) खेल प्राधिकरण ऑफ इंडिया-हॉस्टल कूर्टी पांडा गोवा
पांडा कैसे पहुंच
रेल द्वारा
10 किमी से कम समय में पांडा के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। मडगांव रेल वे स्टेशन पोंडा के पास 17 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है
शहरों के नजदीक
गोवा वेल्हा 16 किमी निकट
मार्गो 16 किलोमीटर के पास
मैडगाँव 17 किमी निकट
Curchorem Cacora 21 किमी निकट
तालुक के पास
पांडा 3 किमी निकट
तिस्वाडी 14 किलोमीटर निकट है
मार्गो 15 किमी के पास
मैडगाँव 15 किलोमीटर दूर
एयर पोर्ट्स के पास
दाबोलिम हवाई अड्डे के पास 20 किलोमीटर दूर है
समब्र एयरपोर्ट 92 किलोमीटर निकट है
हुबली हवाई अड्डे के पास 12 9 किमी
कोल्हापुर हवाई अड्डे के पास 162 किलोमीटर दूर है
पर्यटक स्थलों के पास
गोवा के पास 30 किमी
Nersa 55 किमी निकट
सावंतवाडी 67 किमी निकट
अंबोली 70 किलोमीटर दूर
वेंगुर्ला 71 किमी निकट
जिलों के पास
दक्षिण गोवा 16 किमी निकट
उत्तरी गोवा के पास 25 किलोमीटर दूर है
उत्तर कन्नड़ 73 किमी निकट
बेलगाम 82 किलोमीटर निकट है
रेलवे स्टेशन के पास
कर्मली रेल वे स्टेशन 15 किलोमीटर दूर है
मडगांव रेल वे स्टेशन 17 किलोमीटर दूर है
शहीद भगत सिंह जीवनी
नाम : भगत सिंह
जन्म: 27 सितम्बर, 1907
निधन: 23 मार्च, 1931

उपलब्धियां: भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका
शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।
हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।
प्रारंभिक जीवन
भगत सिंह का जन्म पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनकी याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे। ग़दर पार्टी की स्थापना ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में हुई थी। परिवार के माहौल का युवा भगत सिंह के मष्तिष्क पर बड़ा असर हुआ और बचपन से ही उनकी नसों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।
1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में पढ़ते समय युवा भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के संपर्क में आये। उस समय पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था। जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़ गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया।
क्रन्तिकारी जीवन
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।
फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी शहीद भगत सिंह के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी