सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान पत्र

नाम : श्री रजनीकांत मेंढे
योग्यता : स्नातक (शिक्षक)
स्कूल : जिला परिषद शाला चंदरगांव
वर्ष : 2018
क्षेत्र : चंदर
ब्लाक : भोर
ज़िला : पुणे
राज्य : महाराष्ट्र
सम्मान पत्र :

आदरणीय अध्यापक जी ने अपने डुयटी के प्रति ज़िम्मेदारी निभाकर एक मिसाल कायम की है, १ छात्र को पढ़ाने के लिए रोजाना ५० किलोमीटर दुरी तय छात्र को शिक्षित करने का जो जज्वा दिखाया हैं संस्था इस कार्य को सलाम करती है तथा सरकारी स्कूल में शिक्षा के स्तर को सुधारने का कार्य कर अन्य शिक्षकों के लिए एक नजीर पेश की है शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए उनको संस्था द्वारा संचालित भारतीय डिजिटल रिकॉर्ड में दर्ज कर डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया राष्ट्र निर्माण में सहयोग के लिए धन्यबाद : मेहनाज़ अंसारी (जनरल सेक्रेटरी)

 

विवरण :

introduction

Mr. Rajinikanth Mendhe

Post - Tichar

Eligibility - Graduate

School District Council, Chandgaon

Development block - Bhor

District - Pune

State maharashtra

Mobile 987654321

शिक्षक की महान उपलब्धि 

 खर्चे के नाम पर केंद्र सरकार ऐसे सभी स्कूलों को बंद कर रही है जिनमें 10 से कम छात्र हैं। वहीं महाराष्ट्र सरकार मात्र 1 छात्र को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक को प्रतिदिन 50 किलोमीटर दूर भेजती है। 29 वर्षीय शिक्षक रजनीकांत मेंढे नागपुर में रहते हैं जबकि उनकी पदस्थापना भोर के चंदर गांव में है। इस स्कूल में मात्र एक ही छात्र है। रजनीकांत को लगता था कि इस स्कूल को जल्द ही बंद कर दिया जाएगा परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया। शिक्षक 50 किलोमीटर डेली अपडाउन करता है

पुणे से करीब 100 किमी दूर इस गांव में 15 झोपड़ियां बनी हैं जहां करीब 60 लोग रहते हैं। पिछले दो साल से गांव के रहने वाले 8 साल के युवराज सांगले गांव के स्कूल में एकमात्र छात्र हैं। स्कूल पहुंचकर मेंढे का पहला काम अपने छात्र को ढूंढना होता है। वह बताते हैं, \\\\\\\'वह अक्सर पेड़ में छिप जाता है। कई बार मुझे उसे पेड़ से उतारकर लाना पड़ता है। मैं उसकी स्कूल के लिए अरुचि को समझ सकता हूं। दरअसल उसे अपने दोस्तों के बिना अकेले ही स्कूल पढ़ने आता है।

सांसद सुप्रिया सूले के निर्वाचन क्षेत्र में आता है गांव

चंदर का उजाड़ काफी गहरा है। नजदीक हाइवे से गांव तक जाने के लिए करीब एक घंटे तक मिट्टी धूल भरे रास्ते पर बाइक चलानी होती है। जब बारिश होती है तो आप इस रास्ते का अंदाजा लगा सकते हैं। कीचड़, फिसलन से इस पर चलना दूभर हो जाता है। यह गांव सांसद सुप्रिया सूले का क्षेत्र है लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वह यहां कभी नहीं आईं। 

कई बच्चों ने छोड़ दिया स्कूल, कुछ करने लगे मजदूरी

रजनीकांत मूलत: नागपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि जब 8 साल पहले उन्होंने पढ़ाना शुरू किया था तो यहां करीब 11 बच्चे पढ़ने आते थे। वे पढ़ने में अच्छे थे लेकिन उच्च शिक्षा की सुविधा यहां से 12 किमी दूर मनगांव में होने की वजह से उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। वह आगे कहते हैं, \\\\\\\'कई लड़कियों को खेतों और फैक्ट्री में मजदूरी के लिए गुजरात भेज दिया गया। मैंने उनके माता-पिता से बार-बार बच्चों को मजदूरी न करवाने और स्कूल में पढ़ाने की सिफारिश की लेकिन एक नहीं सुनी गई।\\\\\\\' चंदर गांव में यह स्कूल 1985 में बना था। कुछ साल पहले तक यहां छत के बिना सिर्फ चारदीवारी ही थी। छत को ढकने के लिए टिनशेड लगा दिया गया था। रजनीकांत ने बताया, \\\\\\\'एक बार एक सांप स्कूल की छत से मेरे ऊपर गिर गया था। इसके बाद कुछ महीने पहले ही मैं मिट्टी वाले रास्ते पर बाइक चलाते वक्त सांप पर गिर गया था। मुझे नहीं लगता कि अब तीसरी बार मैं बच पाऊंगा।\\\\\\\'

गांव में बिजली न होते हुए भी दी ई-लर्निंग क्लास लेकिन इस अध्यापक का शिक्षा के प्रति जो उत्साह और जोश है उसे सलाम करने की जरूरत है। गांव में बिजली न होते हुए भी उन्होंने स्कूल में कुछ तारों को इस्तेमाल करके एक छोटा टीवी सेट लगाया और अपने एकमात्र स्टूडेंट को ई-लर्निंग की सुविधा दी। उन्होंने बताया, \\\\\\\'2 साल पहले गांव के अधिकारियों ने हमें 12 वोल्ट का सोलर पैनल दिया था। मैं इसे टीवी चलाने में इस्तेमाल करता हूं। मैंने युवराज का पढ़ाई में इंट्रेस्ट जगाने के लिए दो टेबलेट भी खरीदकर दिए।\\\\\\\' रजनीकांत कहते हैं, \\\\\\\'दूसरे बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ स्कूल में सीखते हैं और खेलते हैं, लेकिन युवराज के साथ सिर्फ मैं ही हूं। उसके लिए, स्कूल खाली डेस्क के साथ चार दीवारी बन गया है। गांव में सिर्फ गायपालन और पत्थर तोड़कर लोगों का गुजारा होता है। यहां गरीबी काफी ज्यादा है। साथ ही हाइवे से गांव तक का रास्ता काफी लंबा और मुश्किल होने की वजह से यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। मेंढे खुद भी इस गांव में फंसे हुए हैं। एक जिला परिषद अध्यापक पांच साल बाद ट्रांसफर के लिए अप्लाई कर सकता है लेकिन री-लोकेशन वैकेंसी के आधार पर होता है। 

संस्था ऐसे समस्त शिक्षकों को सम्मानित कर सलाम करती है

चन्दर गांव के बारे में

चन्दर गांव महाराष्ट्र राज्य, पुणे जिला के  भोर ब्लॉक में एक गांव है। यह या पासिम महाराष्ट्र क्षेत्र से संबंधित है। यह पुणे डिवीजन से संबंधित है।

संजय नगर, बजरंग अली, भोलावड़े, वाघजई नगर, भोलावड़े निकटवर्ती इलाके चन्दर  हैं।

वाई, सासवाद, महाबलेश्वर, पुणे पुणे के पास के शहर हैं।

चन्दर गांव की जनसांख्यिकी

मराठी यहां स्थानीय भाषा है।

चन्दर गांव में राजनीति

बीजेपी, एनसीपी, आरएसपी, आईएनसी, एसएचएस इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलो हैं।

चन्दर गांव के पास मतदान केंद्र / बूथ

विधान सभा क्षेत्र से वर्तमान विधायक 

माननीय संग्राम अनंतराव थोपेट कांग्रेस संपर्क न.  02113-222 9 27

लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वर्तमान सांसद 

माननीय सुप्रिया सुले नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी संपर्क न. 011 2301 8870

चन्दर गांव कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

10 किमी से भी कम समय में भोर के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। पुणे  रेल वे स्टेशन भोर के पास 50 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

भोर के पास पिनकोड

412801 (शिरवाल), 412206 (भोर), 412213 (नासरपुर)

शहरों के नजदीक

वाई 24 किमी निकट है

सासवाद 31 किमी निकट

महाबलेश्वर 35 किमी निकट

पुणे 46 किमी निकट

तालुक के पास

भोर 3 किमी निकट

खंडला 23 किमी निकट

वाई 25 किलोमीटर दूर है

वेले 30 किमी निकट

एयर पोर्ट्स के पास

लोहेगांव हवाई अड्डे के पास 54 किलोमीटर दूर है

छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे 163 किमी निकट

कोल्हापुर हवाई अड्डा 1 9 3 किमी निकट है

गांधीनगर हवाई अड्डे के पास 226 किलोमीटर दूर है

पर्यटक स्थलों के पास

पंचगनी 2 9 किमी निकट

महाबलेश्वर 35 किमी निकट

पुणे 46 किमी निकट

लवासा 50 किमी निकट

पिंपरी-चिंचवाड़ 58 किलोमीटर दूर है

जिलों के पास

पुणे 46 किमी निकट

सतारा 60 किमी निकट

रायगढ़ 130 किलोमीटर दूर

मुंबई 157 किमी निकट

रेलवे स्टेशन के पास

पुणे जेएन रेल वे स्टेशन 47 किलोमीटर दूर है

शिवाजीनगर रेल वे स्टेशन 47 किलोमीटर दूर है

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान भारतीय दर्शनशास्त्री थे जो 1952-1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति तथा 1962 से 1967 तक भारत के दुसरे राष्ट्रपति रह चुके है। उनका विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ बहुत ज्यादा लगाव था और शिक्षण क्षेत्र में भी उन्होंने अच्छे कार्य किये थे। इसीलिए पुरे भारत में 5 सितम्बर उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिन मनाया जाता हैं। आज हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के महान जीवन के बारे में संक्षेप में जानते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – पूरा नाम – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्म – 5 September 1888 जन्मस्थान – तिरुतनी ग्राम, तमिलनाडु पिता – सर्वेपल्ली वीरास्वामी माता – सिताम्मा विवाह – सिवाकमु डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 20 वी सदी के दर्शनशास्त्र और धार्मिकता के एक असाधारण विद्वान थे। उनके शैक्षणिक नियुक्ति में कलकत्ता विश्वविद्यालय (1921-1932) में किंग जॉर्ज के मानसिकऔर नैतिक विज्ञानं का पद भी शामिल है और साथ ही वे पूर्वी धर्म के प्रोफेसर और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय (1936-1952) में नीतिशास्त्र के प्रोफेसर भी थे। उनके दर्शनशास्त्र का आधार अद्वैत वेदांत था, जिसे वे आधुनिक समझ के लिए पुनर्स्थापित करवाना चाहते थे। उन्होंने पश्चिमी परम्पराओ की आलोचना करते हुए हिंदुत्वता की रक्षा की, ताकि वे देश में एक आधुनिक Hindi समाज का निर्माण कर सके। वे भारतीयों और पश्चिमी दोनों देशो में हिंदुत्वता की एक साफ़-सुथरी तस्वीर बनाना चाहते थे। जिसे दोनों देशो के लोग आसानी से समझ सके और भारतीय और पश्चिमी देशो के मध्य संबंध विकसित हो सके। राधाकृष्णन को उनके जीवन के कई उच्चस्तर के पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमे 1931 में दी गयी “सामंत की उपाधि” भी शामिल है और 1954 में दिया गया भारत का नागरिकत्व का सबसे बड़ा पुरस्कार “भारत रत्न” भी शामिल है तथा उन्हें 1963 में ब्रिटिश रॉयल आर्डर की सदस्यता भी दी गयी। राधाकृष्णन का ऐसा मानना था की, “शिक्षक ही देश की सबसे बड़ी सोच होते है”। और तभी से 1962 से उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाया जाता है। प्रारंभिक जीवन – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में जो तत्कालीन मद्रास से लगभग थोड़ी दुरी पर है वहा एक तेलगु परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम सर्वेपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सिताम्मा है। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन तिरुतनी और तिरुपति में बिताया। उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तिरुतनी में ही हुई और 1896 में वे पढने के लिए तिरुपति चले गये। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा – उनके विद्यार्थी जीवन में कई बार उन्हें शिष्यवृत्ति स्वरुप पुरस्कार मिले। उन्होंने वूरहीस महाविद्यालय, वेल्लोर जाना शुरू किया लेकिन बाद में 17 साल की आयु में ही वे मद्रास क्रिस्चियन महाविद्यालय चले गये। जहा 1906 में वे स्नातक हुए और बाद में वही से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनकी इस उपलब्धि ने उनको उस महाविद्यालय का एक आदर्श विद्यार्थी बनाया। दर्शनशास्त्र में राधाकृष्णन अपनी इच्छा से नहीं गये थे उन्हें अचानक ही उसमे प्रवेश लेना पड़ा। उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाने के कारण जब उनके एक भाई ने उसी महाविद्यालय से पढाई पूरी की तभी मजबूरन राधाकृष्णन को आगे उसी की दर्शनशास्त्र की किताब लेकर आगे पढना पड़ा। एम.ए. में राधाकृष्णन में अपने कई शोधप्रबंध लिखे जिसमे “वेदांत का नीतिशास्त्र और उसकी सैधान्तिक पूर्वकल्पना” भी शामिल है। उन्हें हमेशा से ऐसा लगता था की आधुनिक युग के सामने वेदांत को एक नए रूप में रखने की जरुरत है। लेकिन राधाकृष्णन को हमेशा से ये दर था की कही उनके इस शोध प्रबंध को देख कर उनके दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज कही उन्हें डाट ना दे। लेकिन डटने की बजाये जब डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज ने उनका शोध प्रबंध देखा तो उन्होंने उसकी बहोत तारीफ़ की। और जब राधाकृष्णन केवल 20 साल के थे तभी उनका शोध प्रबंध प्रकाशित किया गया। राधाकृष्णन के अनुसार, हॉग और उनके अन्य शिक्षको की आलोचनाओ ने, “हमेशा उन्हें परेशान किया और उनके विश्वास को कम करते गये जिस से भारतीय प्राचीन परम्पराओ से उनका विश्वास कम हो रहा था”। राधाकृष्णन ने स्वयम यह बताया की कैसे वे एक विद्यार्थी की तरह रहे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विवाह और परिवार – राधाकृष्णन का विवाह 16 साल की आयु में उनके दूर की रिश्तेदार सिवाकमु के साथ हुआ। राधाकृष्णन और सिवाकमु को 5 बेटी और एक बेटा, जिसका नाम सर्वपल्ली गोपाल था। सर्वपल्ली गोपाल एक महान इतिहासकार के रूप में भी जाने जाते है। सिवाकमु की मृत्यु 1956 में हुई। भूतकालीन भारतीय टेस्ट खिलाडी व्ही.व्ही.एस. लक्ष्मण उनके बड़े भतीजे है। शिक्षक दिन – September 5 Teachers Day जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ मित्रो और विद्यार्थियों ने उनसे कहा की वे उन्हें उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) मनाने दे। तब राधाकृष्णन ने बड़ा ही प्यारा जवाब दिया, “5 सितम्बर को मेरा जन्मदिन मनाने की बजाये उस दिन अगर शिक्षको का जन्मदिन मनाया जाये, तो निच्छित ही यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।” और तभी से उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिन – Teachers Day के रूप में मनाया जाता है। 1931 में उन्हें सावंत स्नातक के रूप में नियुक्त किया गया। और स्वतंत्रता के बाद से ही उन्होंने अपने नाम के आगे “सर” शब्द का उपयोग भी बंद कर दिया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पुरस्कार – 1954- नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, “भारत रत्न”। 1954- जर्मन के, “कला और विज्ञानं के विशेषग्य”। 1961- जर्मन बुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”। 1962- भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है। 1963- ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान। 1968- साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे)। 1975- टेम्पलटन पुरस्कार। अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया। जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी। 1989- ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अपने जीवन में शिक्षा और शिक्षको से बहोत लगाव था। उस समय जिस समय में वह विद्यार्थी थे, तब शिक्षको को कोई खास दर्जा नहीं जाता था। तब उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिन के रूप में मनाने का एक बड़ा निर्णय लिया था। वे भारत को एक शिक्षित राष्ट्र बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चो को पढ़ाने और जीवन जीने का सही तरीका बताने में व्यतीत किया।