स्वतंत्रता संग्राम सेनानी/महापुरुष/क्रन्तिकारी जन्मदिवस सूची

नाम :
शेख भिखारी अंसारी
जन्मदिवस :
1819
मुत्यु :
8 जनवरी 1858
जन्म स्थान :
रांची
प्रदेश :
झारखण्ड
विचार :

अंसारी के खून का कतरा वतन की आज़ादी पर बहेगा

जीवनी :

शेख भिखारी अंसारी 

शेख भिखारी इतिहास में दर्ज एक ऐसा क्रांतिकारी जिसने मुल्क की आज़ादी को अपने प्राणों से तोल दिया।

शेख भिखारी अंसारी 

 का जन्म सन् 1819 ई० में झारखंड के ओरमांझी थाना के खुदिया गाँव में हुआ था। वह सन् 1857 की क्रांति के दूसरे शहीद थे।

वैसे तो झारखंड की मिट्टी मे शहीदों यादें बसती है इसलिए आज़ादी मे इनका गौरवाविंत इतिहास है जिसमें बिरसा मुंडे, नीलांबर पीतांबर, पण्डित गनपत राय, टिकैत उमराव सिंह, हवलदार नादिर अली, सिपाही रामविजय, शेख हारू, ठाकुर विश्वानाथ शाहदेव जैसे क्रांतिकारीयों के बलिदान की शौर्य गाथांए आज भी यहाँ गूजंती है। उसी जंगे आज़ादी के महानायको मे एक शेख भिखारी अंसारी का है जिनको 1857 की क्रांति मे शहादत नसीब हुई! 

यह गुलामी का वह भयानक दौर था जब पूरा भारत छोटी छोटी रियासतों में बटा हुआ था और अंग्रेजी हुकूमत धीरे धीरे इन्हीं राजे, रजवाड़े व नवाबों पर हमला कर पूरे मुल्क को गुलामी की बेड़ीयों में जकड़कर रखने की बदबूदार सोच के साथ अपने कदम मज़बूत करने के लिए 1856 ई मे झारखंड की भूमि पर भी पंहुची।

ब्रितानी हुकूमत की नापाक मंशा जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को मिली तो उन्होंने अपने वजीर पांडे गनपतराय, दीवान शेख भिखारी व टिकैत उमरांव सिंह को बुलाकर मशवरा किया जिसके लिए  शेख भिखारी अंसारी ने युद्ध रणनीति तैयार कर अंग्रेजो के खिलाफ अपने विद्रोही तेवरों के साथ बग़ावत की कमान संभाली और अपने दो भरोसेमंद साथियों को अंग्रेजी फौज के हेडक्वार्टर्स मे भेजकर जो उस समय रामगढ़ और हजीराबाग मे थी पूरी जानकारी एकत्रित की व ईस्ट इण्डिया कंपनी के दो सिपाहियों नादिर अली खान तथा विजय सिंह को भी अपने साथ शामिल कर मज़बूती पायी इसके साथ ही बड़कागढ़ की फौज मे रांची व चाईबासा के युवाओ को भर्ती कर युद्ध प्रशिक्षण देना शूरू कर दिया!

 शेख भिखारी अंसारी की बाग़ी सोच अंग्रेजी फौज के सामने मुश्किले बढ़ा रही थी क्योंकि धीरे धीरे आसपास सभी रियासतों मे शेख भिखारी ने अपने साथियों जैसे अमानत अली अंसारी, करामत अली व शेख हारू के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के इरादो से अवगत कराकर एकजुटता की अपील कर रहे थे!

अंग्रेजी हुकूमत, विद्रोहीयों के बाग़ी अंदाज़ को भांपने के बाद भी जब पीछे हटने को तैयार नही हुई तो 9 जून 1857 को  शेख भिखारी अंसारी के नेतृत्व मे विद्रोही फौज ने रामगढ़ में स्थित अंग्रेज़ी छावनी पर हमला कर उसपर कब्ज़ा कर लिया, इस हमले में अंग्रेजी हुकूमत को भारी नुकसान हुआ जबकि विद्रोहीयो का आत्मबल व जोश और बढ़ गया, रामगढ़ में अंग्रेज फौज पर विजय का जश्न मनाया गया और उसी रात मे संताल परगना के भानुका अंग्रेजी छावनी पर भी विद्रोही फौज ने हमला कर दिया इस हमले मे भारी संख्या मे अंग्रेजी अफसर व सिपाही मारे गए।

जब दोनों छावनीयों की ख़बर दानापुर अंग्रेजी फौज के हेडक्वार्टर में कमाण्डर मेकडोनाल्ड तक पहुँची तो वह बौखला उठा और भारी अस्लाह बारूद व हथियारो के साथ भारी भरकम फौज विद्रोहियो के खिलाफ रामगढ़ रवाना की, उधर शेख भिखारी भी समझ चुके थे कि अंग्रेजी हुकूमत अपने पूरे लाव लशकर के साथ एक निर्णायक लड़ाई के लिए वापस आयेगी। इस होने वाले हमले के अंजाम से बाखबर शेख भिखारी व उनके देश भक्त लड़ाके एक योद्धा की तरह खड़े थे, और कुछ समय पश्चात अंग्रेजी फौज विद्रोहीयो के सामने थी जो जंगल व पहाड़ी रास्ते से रामगढ़ तथा रांची तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी!

उनको रोकने के लिए शेख भिखारी के साथ टिकैत उमराव सिंह ने मोर्चा संभाला, भीषण गोलीबारी के बीच इन योद्घाओ ने अंग्रेजो को भारी नुकसान पहुंचाया तथा चुट्टूपालू की घाटी पार करनेवाला पुल तोड़ दिया और सड़क के पेड़ों को काटकर रास्ता जाम कर दिया,  शेख भिखारी अंसारी की फौज ने अंगरेजों को भरपूर चुनौती दी लेकिन सीमित हथियार व बारूद के चलते शेख भिखारी के गोलियां व तीर कमान खत्म होने लगी तो शेख भिखारी ने अपनी फौज को पत्थर लुढ़काने का हुक्म दिया इससे अंगरेज फौजी कुचलकर मरने लगे। यह देखकर जनरल मैकडोन्लड ने दूसरे रास्ते की जानकारी लेकर फौज के साथ पहाड़ पर चढ़ गये पर इस रास्ते से चढ़ने की खबर शेख भिखारी को नहीं हो सकी जिसके कारण अंग्रेजी फौज ने शेख भिखारी एवं टिकैत उमराव सिंह को छह जनवरी 1858 को घेर कर गिरफ्तार कर लिया।

सात जनवरी 1858 को फौजी अदालत लगाकर जनरल मैकडोनाल्ड ने  शेख भिखारी अंसारी और उनके साथी टिकैत उमरांव को आनन फानन मे फांसी का फैसला सुनाया गया क्योंकि अंग्रेज़ शेख भिखारी के वीरता और साहस के बाग़ी अंदाज़ से काफी भयभीत थे, *जनरल मैकडोनाल्ड ने इसका गजट में जिक्र करते हुए शेख भिखारी को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम मे खतरनाक बाग़ी करार दिया था*!

और आखिरकार 8 जनवरी 1858 को शैतानी अंग्रेजी हुकूमत ने जंगे आज़ादी के दो *दीवाने शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह* को चुटट्पालू पहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गई, वह पेड़ आज भी सलामत है जो हमें इनकी शहादत की याद दिलाता है साथ ही यहां पर हर साल शहीद दिवस के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है परंतु इस * शेख भिखारी अंसारी* के वंशजों की मुफ़लिसी और बदहाली पर किसी की नज़र नही।

अंसारी के खून का कतरा वतन की आज़ादी पर बहेगा

 (लेख द ट्रूथ लाईन मैग्जीन के संपादक हैं) or विकिपीडिया