वासुदेव बलवंत फडके ब्लॉक अध्यक्ष/ बी.डी.सी. सदस्य परिचय सूची

नाम : शौकीन
पद : क्ष्रेत्र पंचायत सदस्य
वॉर्ड : 48 - रसूलपुर हमीर प्रथम
ब्लॉक डींगरपुर (कुन्दरकी)
ज़िला : मुरादाबाद
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : समाजवादी पार्टी
चुनाव : NA
सम्मान :
NA

विवरण :

SHOKEEN BDC membar age :47 , qual. : 5th , SP

WORD NO. 48 : rasoolpur hameer POST : fatehp[ur khas ,BOLOCK : KUNDARKI , DISST. MORADABAD  (UP ) CONT. : 7055491818

रसूलपुर हमीर के बारे में


रसूलपुर हमीर उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के मुरादाबाद जिले में कुंदरकी ब्लॉक  के एक गांव है। यह मुरादाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय मुरादाबाद से दक्षिण की ओर 14 किमी दूर स्थित है। Kundarki से 7 किमी। 357 राज्य की राजधानी लखनऊ से केएम

ललवारा(1 किमी), लालपुर गंगवारी (1 किमी), अल्लापुर  भिकान  (2 किमी), तखतपुर अल्लाह उर्फ़  नानकार  (2 किमी), मदारपुर  (2 किमी) रसूलपुर हमीर जाने के लिए आसपास के गांव हैं। रसूलपुर हमीर उत्तर की ओर मुरादाबाद ब्लॉक , पश्चिम की ओर असमौली ब्लॉक , पश्चिम की ओर सम्भल ब्लॉक , पूर्व की ओर मुंडा पांडे ब्लॉक  से घिरा हुआ है।

सिरसी, मुरादाबाद, सम्भल, अमरोहा रसूलपुर हमीर जाने के लिए पास के शहर हैं।

रसूलपुर हमीर की जनसांख्यिकी = २५००,  कुल वोटर संख्या= १८०० , सफाई कर्मचारी संख्या= ०२ 
१३ = घंटे गांव में बिजली उपलब्ध है 
== =  परिवार आवासहीन हैं 
४०० =  परिवारों को शुलभ शौचालय की आवश्कता है 

हिंदी स्थानीय भाषा में यहाँ है।
रसूलपुर हमीर में राजनीति

बसपा, भाजपा, सपा इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
मतदान केंद्रों / रसूलपुर हमीर के पास बूथ

1) आगनवाड़ी  केंद्र अहमदनगर  जैतवाद 
2) जूनियर  हाई स्कूल रसूलपुर हमीर  कक्ष -2
3) जूनियर हाई स्कूल असदपुर कक्ष -1
4) प्राइमरी स्कूल डींगरपुर  कक्ष -1
5) प्राइमरी स्कूल डींगरपुर  कक्ष -२

विधानसभा क्षेत्र:= कुंदरकी 
विधानसभा के विधायक  = मोहम्मद रिजवान
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र: = सम्भल 
संसद सांसद: = सत्यपाल सिंह
मसेबी रसूलपुर तक कैसे पहुंचें

रसूलपुर हमीर तक कैसे पहुंचें

रेल द्वारा

मछरिया  रेल मार्ग स्टेशन रसूलपुर हमीर को बहुत पास के रेलवे स्टेशन है। मुरादाबाद रेल मार्ग स्टेशन प्रमुख रेलवे स्टेशन 13 किलोमीटर रसूलपुर हमीर के निकट है

रसूलपुर हमीर के पास पिन कोड

244102 (पाकबड़ा ), 202413 (कुंदरकी ), 244301 (सिरसी (मुरादाबाद))

पास के शहर
सिरसी 14 KM पास
मुरादाबाद के पास 14 KM
सम्भल 23 किमी के पास
अमरोहा के पास 31 KM

पास से ब्लॉक 
कुंदरकी 7 KM पास
मुरादाबाद के पास 13 KM
असमौली  15 KM पास
सम्भल 20 KM पास

पास से एयर पोर्ट्स
पंतनगर हवाई अड्डे के पास 91 किलोमीटर
मुजफ्फरनगर हवाई अड्डे के पास 141 km
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास 176 किमी
देहरादून हवाई अड्डे के पास 209 km

पास के पर्यटक स्थल 
मुरादाबाद के पास 14 KM
काशीपुर 65 किमी के पास
हस्तिनापुर 92 km पास
रामनगर के पास 94 km
कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास 102 KM

पास से जिलों की दुरी 
मुरादाबाद के पास 14 KM
ज्योतिबा फुले नगर 32 किमी के पास
रामपुर के पास 36 KM
उधम सिंह नगर के पास 81 km

 रेलवे स्टेशन के पास
मुरादाबाद रेल मार्ग स्टेशन के पास 14.1 किमी
अमरोहा रेल मार्ग स्टेशन के पास 30 KM

विकास कार्य :

note- बच्चों की शिक्षा में केवल ईमानदार बीडीसी मेंबर , ग्राम प्रधान से ही डोनेशन ली जा रही है जिन पंचायत के ग्राम प्रधान  की घोटाले की शिकायत है उन जनप्रतिनिधि से डोनेशन  नहीं ली गयी है, और उनकी जानकारी इस वेबसाइट में दर्ज नहीं जी जा रही उनके स्थान पर उपविजेता पूर्व प्रतयाशी सम्मानित समाजसेवक का  विवरण दिया जा रहा है 

वासुदेव बलवन्त फड़के जीवनी
पूरा नाम - वासुदेव बलवन्त फड़के
जन्म - 4 नवम्बर, 1845 ई.
जन्म भूमि - शिरढोणे गांव, रायगड ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु - 17 फ़रवरी, 1883 ई.
कर्म भूमि - भारत
प्रसिद्धि - स्वतंत्रता सेनानी
नागरिकता - भारतीय

वासुदेव बलवन्त फड़के (अंग्रेज़ी:Vasudev Balwant Phadke, जन्म- 4 नवम्बर, 1845 ई. 'महाराष्ट्र' तथा मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1883 ई. 'अदन') ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। वासुदेव बलवन्त फड़के का जन्म महाराष्ट्र के रायगड ज़िले के 'शिरढोणे' नामक गांव में हुआ था। फड़के ने 1857 ई. की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिंंनगारी जलायी थी। देश के लिए अपनी सेवाएँ देते हुए 1879 ई. में फड़के अंग्रेज़ों द्वारा पकड़ लिये गए और आजन्म कारावास की सज़ा देकर इन्हें अदन भेज दिया गया। यहाँ पर फड़के को कड़ी शारीरिक यातनाएँ दी गईं। इसी के फलस्वरूप 1883 ई. को इनकी मृत्यु हो गई। परिचय
वासुदेव बलवन्त फड़के बड़े तेजस्वी और स्वस्थ शरीर के बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। कल्याण और पूना में उनकी शिक्षा हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें और पढ़ाई छोड़ दें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए। वहाँ पर जी.आर.पी. में बीस रुपए मासिक की नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। 28 वर्ष की आयु में फड़के की पहली पत्नी का निधन हो जाने के कारण इनका दूसरा विवाह किया गया।
व्यावसायिक जीवन
विद्यार्थी जीवन में ही वासुदेव बलवन्त फड़के 1857 ई. की विफल क्रान्ति के समाचारों से परिचित हो चुके थे। शिक्षा पूरी करके फड़के ने 'ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे' और 'मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट', पूना में नौकरी की। उन्होंने जंगल में एक व्यायामशाला बनाई, जहाँ ज्योतिबा फुलेभी उनके साथी थे। यहाँ लोगों को शस्त्र चलाने का भी अभ्यास कराया जाता था। लोकमान्य तिलक ने भी वहाँ शस्त्र चलाना सीखा था।
गोविन्द रानाडे का प्रभाव
1857 की क्रान्ति के दमन के बाद देश में धीरे-धीरे नई जागृति आई और विभिन्न क्षेत्रों में संगठन बनने लगे। इन्हीं में एक संस्था पूना की 'सार्वजनिक सभा' थी। इस सभा के तत्वावधान में हुई एक मीटिंग में 1870 ई. में महादेव गोविन्द रानाडे ने एक भाषण दिया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अंग्रेज़ किस प्रकार भारत की आर्थिक लूट कर रहे हैं। इसका फड़के पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे नौकरी करते हुए भी छुट्टी के दिनों में गांव-गांव घूमकर लोगों में इस लूट के विरोध में प्रचार करते रहे।
माता की मृत्यु
1871 ई. में एक दिन सायंकाल वासुदेव बलवन्त फड़के कुछ गंभीर विचार में बैठे थे। तभी उनकी माताजी की तीव्र अस्वस्थता का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि 'वासु' (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे। इस वेदनापूर्ण तार को पढ़कर अतीत की स्मृतियाँ फ़ड़के के मानस पटल पर आ गयीं और तार लेकर वे अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए सतत प्रयासरत रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने अवकाश नहीं दिया, लेकिन वासुदेव बलवन्त फड़के दूसरे दिन अपने गांव चले आए। गांव आने पर वासुदेव पर वज्राघात हुआ। जब उन्होंने देखा कि उनका मुंह देखे बिना ही तड़पते हुए उनकी ममतामयी माँ चल बसी हैं। उन्होंने पांव छूकर रोते हुए माता से क्षमा मांगी, किन्तु अंग्रेज़ी शासन के दुव्यर्वहार से उनका हृदय द्रवित हो उठा।
सेना का संगठन
इस घटना के वासुदेव फ़ड़के ने नौकरी छोड़ दी और विदेशियों के विरुद्ध क्रान्ति की तैयारी करने लगे। उन्हें देशी नरेशों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी। उन्होंने फ़रवरी 1879 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। धन-संग्रह के लिए धनिकों के यहाँ डाके भी डाले। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया। किन्तु उन्हें नवयुवकों के व्यवहार से आशा की कोई किरण नहीं दिखायी पड़ी। कुछ दिनों बाद 'गोविन्द राव दावरे' तथा कुछ अन्य युवक उनके साथ खड़े हो गए। फिर भी कोई शक्तिशाली संगठन खड़ा होता नहीं दिखायी दिया। तब उन्होंने वनवासी जातियों की ओर नजर उठायी और सोचा आखिर भगवान श्रीराम ने भी तो वानरों और वनवासी समूहों को संगठित करके लंका पर विजय पायी थी। महाराणा प्रताप ने भी इन्हीं वनवासियों को ही संगठित करके अकबर को नाकों चने चबवा दिए थे। शिवाजी ने भी इन्हीं वनवासियों को स्वाभिमान की प्रेरणा देकर औरंगज़ेब को हिला दिया था।
ईनाम की घोषणा
महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन मंत्रणा करने के लिए विश्राम बाग़ में इकट्ठा थे। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी। 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर 'रिचर्ड' का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।
गिरफ़्तारी
1857 ई. में अंग्रेज़ों की सहायता करके जागीर पाने वाले बड़ौदा के गायकवाड़ के दीवान के पुत्र के घर पर हो रहे विवाह के उत्सव पर फड़के के साथी दौलतराम नाइक ने पचास हज़ार रुपयों का सामान लूट लिया। इस पर अंग्रेज़ सरकार फड़के के पीछे पड़ गई। वे बीमारी की हालत में एक मन्दिर में विश्राम कर रहे थे, तभी 20 जुलाई, 1879 को गिरफ़्तार कर लिये गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजन्म कालापानी की सज़ा देकर फड़के को 'अदन' भेज दिया गया।
निधन
अदन पहुँचने पर फड़के भाग निकले, किन्तु वहाँ के मार्गों से परिचित न होने के कारण पकड़ लिये गए। जेल में उनको अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गईं। वहाँ उन्हें क्षय रोग भी हो गया और इस महान् देशभक्त ने 17 फ़रवरी, 1883 ई. को अदन की जेल के अन्दर ही प्राण त्याग दिए।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फडके के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी