अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : आरिफा शकील
पद : नगर पालिका अध्यक्षा
वॉर्ड : 00 नगर
पालिका/परिषद संभल
ज़िला : संभल
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 - 98861/23034 वोट
सम्मान :
NA

विवरण :

Introduction
Honorable Arifa Shakeel
Chairman Municipal Council Sambhal
State - Uttar Pradesh
Mob -9758021786
Qualification-another
Support - Nurdalay
नगर पालिका परिषद संभल के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 172070 मतदाता हैं, संभल; शहर में कुल 37 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में निर्दलीय समर्थित नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष, श्रीमती आरिफा शकील जी ने कुल पड़े मत संख्या 98861 से से (23034) 24.21 मत पाकर समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवार
श्रीमती फरहाना (समाजवादी पार्टी) (21152) को वोटों के 2 हजार अधिक मतों से को हराकर चुनाव जीता

3- पूनम सॉख्यधर (भारतीय जनता पार्टी) 15695 मत प्राप्त किये

५- आसिया (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) 13434 मत प्राप्त किये

श्रीमती आरिफा जी इक़बाल महमूद सपा विधायक के करीबी पूर्व सभासद शकील जी की धरम पत्नी हैं ज क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं जो पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं अपनी जुझरु मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के नागरिक बहुत सम्मान देते हैं,

संभल जिले के बारे में

संभल उत्तर प्रदेश राज्य के जिला है । यह मोरादाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह दक्षिणी ओर जिला मुख्यालय मुरादाबाद से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक तहसील मुख्यालय है
संभल पिन कोड 244302 है और डाक प्रधान कार्यालय संभल है।
कबलपुर सराय (2 किलोमीटर), नोरीयन सराय (2 किलोमीटर), शेर खान सराय (2 किलोमीटर), हसनपुर मुंजावत्ता (3 किलोमीटर), तिरुपुर इलाहा (3 किलोमीटर) सम्हाल के पास के गांव हैं। संभल ब्लॉक से लेकर उत्तर की तरफ, बनियाखेड़ा ब्लॉक की ओर पूर्व, बहजोई तहसील की तरफ दक्षिणी, असमौली ब्लॉक की ओर उत्तर की तरफ है।

संभल, सिरसी, चंदौसी, मोरादाबाद निकटवर्ती शहर हैं, जो संभल में हैं।
संभल की जनसांख्यिकी
हिंदी यहां स्थानीय भाषा है
संभल में राजनीति
आरपीडी, भाजपा, सपा इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।

संभल विधान सभा के मौजूदा विधायक

माननीय इक़बाल महमूद (समाजवादी पार्टी)

संभल संसद के मौजूदा सांसद

माननीय सत्यपाल सिंह (भारतीय जनता पार्टी)

संभल के पास मतदान केंद्र / बूथ

1) पंचायती राज। स्कूल शेर खान सराय कक्ष -1
2) पंचायती राज। स्कूल शेर खान सराय कक्ष -2
3) बिर्जन्दन प्रसाद दीनदयाल इंटर कॉलेज कक्ष -7
4) ब्राइट लैंड पब्लिक स्कूल रूम -1
5) फ़ैज गर्ल्स इंटर कॉलेज नखास कक्ष -2
संभल विधानसभा क्षेत्र में मंडल

असमौली, मोरादाबाद, पंवासा, संभल,

संभल विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012 इकबाल महमूद एसपी 79820 = 30047 राजेश सिंघल भाजपा 49773

2007 इकबाल महमूद एसपी 460 9 660 =11660 राजेश सिंघल भाजपा 34436

2002 इकबाल महमूद एसपी 52562 = 21306 शफीकुर रहमान बरक आरपीडी 31256

1991 इकबाल महमूद सपा 57979 =179 99 सत्य प्रकाश भाजपा 40470

1993 सत्य प्रकाश भाजपा 44298 =4802 शफीकुरमान वर्क सपा एसपी 394 9 6

1991 इकबाल महमूद जेडी 3 9 0 9 1 3281 विजय कुमार उर्फ ​​विजय त्यागी भाजपा 35810

1989 शफीकुर्रमान वारक जेडी 36352 4079 विजय प्रकाश त्यागी उर्फ ​​विजय कुमार बसपा 32273

1985 शफीकुर रहमान वारक एलकेडी 20586 4175 महमूद हसन खान 16411 निर्दलीय

1919 शार्यातुल्ला कांग्रेस (आई) 18946= 4014 विजय प्रकाश भाजपा 14932

1977 शफीकुर-रहमान बरक जेएनपी 21188 =1424 शारतुल्ला कांग्रेस 19764

1974 शफीकुर रहमान बरक बीकेडी 16532 =1005 महमूद हसन खान कांग्रेस 15527

1969 महमूद हसन खान बीकेडी 21075 =8263 अजहर हुसैन कांग्रेस 12812

1967 एम। कुमार बीजेएस 22864 =4852 एम.एच. खान 18012

1962 महमूद हसन खान आरईपी 21568 =4734 महेश चन्द्र जेएस जेएस 16834

1957 महमूद हुसैन खान भारत 22351 =7781 जरीफ हुसैन कांग्रेस कांग्रेस कांग्रेस 14570

1951 लेखराज सिंह कांग्रेस 18514 =8155 बहारी लाल केएमपीपी 1035 9

1951 जीआईएस जगदीश सरन रास्तोगी कांग्रेस 21275 =8340 महमूद हसन खान केएमपीपी 12935
संभल पहुंचने के लिए
रेल द्वारा
संभल एचटीएम सर रेल वे स्टेशन संभाल में बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। कभी भी मोरादाबाद रेलवे स्टेशन प्रमुख रेलवे स्टेशन 38 किलोवाट संभाल के निकट है

शहरों के पास

संभल 2 के.एम.
सिरसी के निकट 10 किलोमीटर
चंदौसी के पास 27 किमी
मोरादाबाद के पास 38 किलोमीटर दूर

तालुक से करीब
पंवासा के निकट 6 किलोमीटर
संभाल 7 किलोमीटर
बनीयाखेड़ा के पास 19 किलोमीटर
बहोजी के पास 21 किलोमीटर

हवाई अड्डा के निकट
पंतनगर हवाई अड्डा 113 के.एम.
मुज़फ्फरनगर एयरपोर्ट 146 के.एम.
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 161 के.एम.
खेरिया हवाई अड्डा 188 के.एम.

पर्यटन स्थल के पास
मुरादाबाद 39 किलोमीटर दूर
बुलंदशहर 82 किलोमीटर
काशीपुर 90 के.एम.
हस्तिनापुर 97 के.एम.
अलीगढ़ 101 के.एम.

जिले से पास मोरादाबाद 38 किलोमीटर
ज्योतिबा फुले नगर 43 किलोमीटर
रामपुर 56 के.एम.
बुलंदशहर 82 किलोमीटर

रेलवे स्टेशन से करीब
संभल एचटीएम सर रेलवे स्टेशन 3.7 किलोमीटर
चांदौसी जेएन रेल वे स्टेशन 25 के.एम.
मुरादाबाद रेलवे स्टेशन 38 के.एम.

विकास कार्य :

NA
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी