अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय राजपाल
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 03 - गडरपुरा 7
पालिका/परिषद बिसौली
ज़िला : बदायूँ
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 - 716-432 वोट
सम्मान :
माननीय जी से अभी विवरण और सामाजिक कार्य हेतु कोई डोनेशन और जानकारी प्राप्त नहीं हुआ है जल्दी है सम्मानित किया जायेगा

विवरण :

03 - गडरपुरा 7

बिसौली नगर पालिका परिषद के बारे में

बिसौली नगर पालिका बदायूँ जिले का एक नगर है। जिसमे २५ वार्ड हैं इस नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष माननीय अबरार अहमद हैं, जो निकाय चुनाव २०१७ में समाजवादी पार्टी के समर्थन से जीते हैं जिनको कुल पड़े मत (16075) में से 6182 मत प्राप्त हुए

२- सरिता = भारतीय जनता पार्टी ५१२४ मत प्राप्त हुए

३- अशोक कुमार निर्दलीय १४७१ मत प्राप्त हुए

४- प्रभाकर = निर्दलीय १००४ मत प्राप्त हुए

उन्होंने अपने निकटतम प्रत्याशी को लगभग १००० अधिक वोटों से हराया, अबरार जी लगातार दूसरी बार नगर की जनता ने अध्यक्ष चुना है,

बिसौली के बारे में

बिसौली उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के बदायूँ जिले में एक तहसील है। बिसौली तहसील मुख्यालय बिसौली शहर है। यह बरेली डिवीजन का है। यह जिला मुख्यालय बदायूँ से 40 किमी उत्तर की ओर स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से पूर्व की ओर 299 कि.मी.
बदायूँ तहसील को असफपुर तहसील से उत्तर की तरफ, इस्लाम नगर तहसील पश्चिम की तरफ, वजीरगंज तहसील पूर्व की तरफ, अंबीपुर तहसील को दक्षिण की तरफ। उज्नी सिटी, चंदौसी शहर, सहसवान शहर, शाहबाद, रामपुर शहर निकटतम शहर बिसौली में हैं।
यह स्थान बदायूँ जिले और बरेली जिले की सीमा में है। बरेली जिले रामनगर इस स्थान के लिए पूर्व है।
मोरादाबाद, अलीगढ़, काशीपुर, बुलंदशहर , महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास हैं।

बिसौली नगर पालिका के मतदाता संख्या = 24265
हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू बोलते हैं
बिसौली तहसील में राजनीति
आरपीडी, बसपा, जद (यू), बीजेपी, एसपी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।
बिसौली तहसील कई विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में आती है।
बिसौली तहसील में कुल 2 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं।

बिसौली = कुशाग्र सागर बीजेपी = Contact Number: 7060104567

साहसवान = ओमकार सिंह एसपी = Contact Number: 9458500750

बिसौली तहसील बदायूँ संसद के तहत आता है, मौजूदा सांसद माननीय धर्मेंद्र यादव समाजवादी पार्टी Tel : (05688) 276017, 276551 Mob : 09720170999

बिसौली तहसील का मौसम और जलवायु
गर्मियों में गर्म है बिसौली गर्मी में उच्चतम दिन का तापमान 25 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच है जनवरी के औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 16 डिग्री सेल्सियस, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 30 डिग्री सेल्सियस, मई 35 डिग्री सेल्सियस रहा है

बिसौली तहसील पहुंचने के लिए
रेल द्वारा

10 किमी से भी कम समय में बिसौली तहसील के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है भी बरेली रेलवे स्टेशन बिसौली के करीब 54 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है
बिसौली तहसील के पिन कोड

202521 (मुंदिया धुरकी), 202520 (बिसौली), 202525 (सैदपुर), 202524 (रुदायन), 243633 (बिल्सी), 243636 (किछला)
आस पास के शहर

उझानी 13 किमी के निकट
चंदौसी 24 किलोमीटर के करीब
सहसवान 33 के.एम. के पास
शाहाबाद, रामपुर 36 किमी

पास के ब्लॉक

बिसौली 0 के.एम.
आसफपुर 11 किलोमीटर
इस्लामगर 17 किलोमीटर
वजीरगंज 18 किलोमीटर

हवाई अड्डा के पास

पंतनगर हवाई अड्डा 110 किमी
खेरिया हवाई अड्डा 176 के.एम.
मुज़फ्फरनगर एयरपोर्ट 197 के.एम.
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 201 के.एम.

जिले से पास
बदायूँ 38 किलोमीटर
बरेली 55 के.एम.
रामपुर 64 किलोमीटर
कांशीराम नगर रेलवे स्टेशन से करीब 67 किलोमीटर
चांदौसी जे एन रेलवे स्टेशन करीब 26 किमी
आंवला रेलवे स्टेशन 27 किमी
बिसौली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल
असफ़पुर, बिसौली, इस्लामगर, वाजिरगंज,
बिसौली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।
2012 आशुतोष मौर्य उरुफ राजू एसपी 89457 =429 090 प्रित सागर उरफ पुष्पा राणी बसपा 46467

2007 उमलेश यादव आरपीडी 51116 = 13308 योगेंद्र कुमार कुन्नू सपा 37808

2002 योगेंद्र कुमार एसपी 37980 = 2251 विकास यादव आरपीडी 35729
1996 योगेंद्र कुमार एसपी 60846 = 23775 गेंदान लाल बसपा 37071

१९९३ दया सिंधु शंकरधर भाजपा 38636 = 4384 योगेंद्र कुमार कांग्रेस 34252

1991 कृष्ण वीर सिंह जेडी 24812 = 309 योगेंद्र कुमार कांग्रेस 24503

1989 योगेंद्र कुमार कांग्रेस 32871 = 2903 कृष्णवीर सिंह जेडी 29968

1985 योगेंद्र कुमार भारत 37293 =18569 कृष्णवीर सिंह कांग्रेस 18724

1981 क.व्. सिंह कांग्रेस (आई) 22767 =7187 स.देवी लकड़ 15580

19191 बाबु बृज बल्लभ कांग्रेस (आई) 26815 = 4603 शिव राज सिंह जेएनपी 22212
1977 बृज बल्लभ (निर्दलीय) 18404 =1918 बनवारी जेएनपी 16486

1974 कृष्ण विर सिंह बीकेडी 22816 = 4797 शिव राज सिंह कांग्रेस 18019

1969 शिव राज सिंह बीकेडी 24658 = 2431 ब्रिज बल्लग कांग्रेस 22227
1967 एस। सिंह बीजेएस 29828 = 7880 एस आर सिंह कांग्रेस 21948
1962 शिव राज सिंह कांग्रेस 11014 = 440 शियाम सिंह पीएसपी 10574

1957 केशो राम कांग्रेस 26980 = 8685 रतन सिंह पीएसपी 18295

1957 शिव राज सिंह इंक 31704 = 8471 शियाम सिंह पीएसपी 23233

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी