अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय रेशमा परवीन
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 19-अंसारियान मध्य व ठाकुरान पूर्वी आंशिक
पालिका/परिषद बिलारी
ज़िला : मुरादाबाद
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : पीस पार्टी
चुनाव : 2017 - 631 वोट
सम्मान :
माननीय जी से अभी विवरण और सामाजिक कार्य हेतु कोई डोनेशन और जानकारी प्राप्त नहीं हुआ है जल्दी है सम्मानित किया जायेगा

विवरण :

 

माननीय रेशमा परवीन

बिलारी नगर पालिका परिषद के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 34694 मतदाता हैं, बिलारी; नगर में कुल 35 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर माननीय ज्योति सिंह जी ने कुल पड़े मत संख्या 22856 में से (9113) 41.5 मत पाकर पीस पार्टी समर्थित उम्मीदवार

श्रीमती आशिया बेगम पीस पार्टी (4948) को चार हजार अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता

3- शहला वाजिद (बहुजन समाज पार्टी) 2798 मत प्राप्त किये

५- नायाब जहाँ (समाजवादी पार्टी) 2570 मत प्राप्त कर चौथे न. पर रहीं

श्रीमती ज्योति सिंह जी श्री ऋषिपाल सिंह जी की धर्म पत्नी हैं जो पूर्व विधायक प्रत्याशी बीजेपी जो क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं अपनी जुझरु मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के समस्त वर्गों में अच्छी पकड़ है, क्षेते के नागरिक बहुत सम्मान देते हैं,

बिलारी उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के मुरादाबाद जिले में एक तहसील है बिलारी तहसील मुख्यालय बिलारी शहर है। यह मुरादाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह मुरादाबाद जिले के मुख्यालय से दक्षिण की तरफ 25 किमी स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से पूर्व की ओर 32 9 कि.मी.
बिलारी तहसील से बांनीखेड़ा ब्लॉक पश्चिम की तरफ, चंदौसी तहसील की तरफ दक्षिण में, पूर्वी तट पर शाहाबाद तहसील, उत्तर की ओर कुंडकारी ब्लॉक के पास है।
चंदौसी शहर, शाहबाद, रामपुर शहर, सिरसी शहर, संभल शहर, बिलारी से निकटतम शहर हैं।

यह 1 9 6 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है।

मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर, बुलंदशहर, काठगोदाम (हल्द्वानी-काठगोदाम) महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास देखने के लिए हैं।

बिलारी तहसील की जनसांख्यिकी

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू, अंग्रेजी, खड़ीबाली, हरयानवी, पंजाबी, कुमाओनी बोलते हैं।

बिलारी तहसील बिलारी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है,

वर्तमान मौजूदा विधायक माननीय मौ. फहीम समाजवादी पार्टी

बिलारी तहसील संभल संसद निर्वाचन क्षेत्र में आती है, मौजूदा सांसद

माननीय सत्यपाल सिंह भारतीय जनता पार्टी Mob : 09568639837, 09013869411

बिलारी विधानसभा का विधायक जितने का इतिहास
2012 मोह. इरफ़ान समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते उनकी मृत्यु उपरान्त उनके पुत्र मोहद. फहीम उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को हराया ,

बिलारी तहसील का मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है बिलारी गर्मी उच्चतम दिन तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच है जनवरी के औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 16 डिग्री सेल्सियस, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 30 डिग्री सेल्सियस, मई 35 डिग्री सेल्सियस रहा है

कैसे बिलारी पहुंचने के लिए

रेल द्वारा
जरगांव रेलवे स्टेशन, सोनाकपुर हॉल्ट रेल वे स्टेशन बिलारी तहसील के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। मुरादाबाद रेलवे स्टेशन बिलारी के करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

बिलारी तहसील के पिन कोड

202415 (राजा का सहसपुर), 202412 (रेलवे कॉलोनी चंदौसी), 202411 (बिलारी), 244 9 24 (मोदीपुर), 244102 (पक्कावार), 244001 (मोरादाबाद)

आस पास के शहर चंदौसी 17 किलोमीटर
शाहाबाद, रामपुर 18 किलोमीटर
सिरसी के निकट 24 किलोमीटर संभाले 31 किलोमीटर


तालुक के पास बिलारी 0 के.एम.
बनीयाखेड़ा 12 किलोमीटर
चंदौसी 17 किलोमीटर
शाहबाद 17 किलोमीटर


हवाई बंदरगाहों के पास
पंतनगर हवाई अड्डा 89 किलोमीटर
मुजफ्फरनगर हवाई अड्डा 167 के.एम.
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 191 के.एम.
खेरिया हवाई अड्डा 201 के.एम.


जिले से पास
मोरादाबाद 33 के.एम.
रामपुर 34 किलोमीटर
ज्योतिबा फुले नगर 58 किलोमीटर

रेलवे स्टेशन के नजदीक
बरेली 66 किमी
जर्गाव रेल वे स्टेशन 9.0 के.एम.
चांदौसी रेल वे स्टेशन करीब 15 किलोमीटर दूर
रामपुर रेलवे स्टेशन करीब 32 किलोमीटर दूर है

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी