अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय सुमित उर्फ सुमित बाबू
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 05 - लोधियाँन
पालिका/परिषद चंदौसी
ज़िला : संभल
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 - 1811/810 वोट
सम्मान :
माननीय जी से अभी विवरण और सामाजिक कार्य हेतु कोई डोनेशन और जानकारी प्राप्त नहीं हुआ है जल्दी है सम्मानित किया जायेगा

विवरण :

Introduction
Honble Sumit alias Sumit Babu
Members
ward No -05 Lodhiyan
Municipal Council - Chandosi
District - Sambhal
State - Uttar Pradesh
Mob - 8445046681
Eligibility -graduate
Support -Independence

वार्ड न. 05 के बारे में

नगर पालिका चंदौसी के वार्ड में कुल 3920 मतदाता हैं ,निकाय चुनाव 2017 में वार्ड न. 05 लोधियाँन से निर्दलीय समर्थित प्रत्याशी माननीय माननीय सुमित उर्फ सुमित बाबू जी को कुल पड़े मत संख्या (1811) में से - 810- 41.88 प्रतिशत मत पाकर निकटतम प्रत्याशी

2 - नरेन्द्र कुमार,भारतीय जनता पार्टी (547) 28.28प्रतिशत मत प्राप्त
3 - प्रमोद, समाजवादी पार्टी (245) 12.67% मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे

माननीय सुमित जी 250 अधिक मतों से जीत हासिल कर सभासद पद पर काबिज हुए
चंदौसी नगर पालिका परिषद के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 93586 मतदाता हैं, चंदौसी; शहर में कुल 25 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष, माननीय इन्‍दू रानी जी ने कुल पड़े मत संख्या 47280 से से (22668) 49.97 प्रतिशत मत पाकर
समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवार
रेवा राम (समाजवादी पार्टी) (16033) 35.34 प्रतिशत को वोटों के 6000 अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता

3- रामरूप सिंह (बहुजन समाज पार्टी) (2506) 5.52 प्रतिशत मत प्राप्त किये

5- वलवीर (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) 2395 5.28 प्रतिशत मत प्राप्त किये

श्रीमती इन्दु रानी जी महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष के पद नियुक्त की गयी थीं जो एक समाज सेवी के रूप में अपनी अलग पहचान के कारण क्षेत्र अपनी जुझरु मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के नागरिक बहुत सम्मान देते हैं,

चंदौसी उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के सम्भल जिले में एक तहसील है चंदौसी तहसील मुख्यालय चंदौसी शहर है। यह मुरादाबाद डिवीजन का है। यह जिला मुख्यालय संभल से 30 किमी पूर्व की ओर स्थित है राज्य की राजधानी लखनऊ से पूर्व की ओर 324 कि.मी.
चंदौसी तहसील को बनियाखेड़ा ब्लॉक से उत्तर की तरफ, बिलाड़ी तहसील उत्तर की ओर, पूर्व की ओर असफपुर ब्लॉक, दक्षिण की तरफ इस्लाम नगर ब्लॉक से घिरा है। चंदौसी शहर, सिरसी शहर, बिसौली, संभल शहर, चंदौसी में निकटतम शहर हैं।
यह 1 9 3 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है। यह स्थान बुडाऊन जिला और मोरादाबाद जिले की सीमा में है। मोरादाबाद जिला बहजोई इस जगह की ओर पश्चिम है।

मोरादाबाद, काशीपुर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हस्तिनापुर देखने के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास हैं।
चांदौसी तहसील की जनसांख्यिकी

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू बोलते हैं
चंदौसी तहसील में राजनीति
चांदौसी तहसील का मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है चंदौसी गर्मी में उच्चतम तापमान 25 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच है। जनवरी के औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 16 डिग्री सेल्सियस, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 30 डिग्री सेल्सियस, मई 35 डिग्री सेल्सियस रहा है

कैसे चंदौसी तहसील पहुंचे रेल द्वारा चंदौसी जेएन रेलवे स्टेशन, सिसरका रेलवे स्टेशन चांदौसी तहसील के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं।कभी मोरादाबाद रेलवे स्टेशन चांदौसी के करीब 47 किलोमीटर दूर एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है

आस पास के शहर
चांदौसी के पास 0 किमी
सिरसी के निकट 28 किमी
बिसौली 25 के.एम.

तालुके के निकट
संभल 29 कि.मी.
चंदौसी 0 के.एम.
बनीखेड़ा 9 किलोमीटर
बिलारी 16 के.एम.
आसफापुर 17 किलोमीटर

एयर पोर्ट्स के पास
पंतनगर हवाई अड्डा 104 किमी
मुज़फ्फरनगर हवाई अड्डा 172 के.एम.
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 184 के.एम.
खेरिया हवाई अड्डा 184 के.एम.

जिले से पास
मोरादाबाद 47 किलोमीटर
रामपुर 51 किलोमीटर
बुदुन 63 किलोमीटर के पास ज्योतिबा फुले नगर 65 किमी

रेलवे स्टेशन के पास
चांदौसी जेएन रेल वे स्टेशन 1.2 के.एम.
सिसरका रेल वे स्टेशन 8.3 के.एम.
मजादा हॉल्ट रेल वे स्टेशन 8.6 किलोमीटर
आंवला रेल वे स्टेशन करीब 46 किलोमीटर

चंदौसी तहसील संभल संसद निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, वर्तमान मौजूदा सांसद
माननीय सत्यपाल सिंह (बीजेपी) हैं

चंदौसी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में विद्यमान मौजूदा विधायक
माननीय गुलाबो देवी (बीजेपी)

चंदौसी विधानसभा क्षेत्र में मंडल
बहजोई, बनीखेड़ा, पंवास, चंदौसी,

चांदौसी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।
2012 लक्ष्मी गौतम एसपी 55871 =4007 गुलाब देवी बीजेपी 51864

2007 गिरीश चंद्र बीएसपी 40335 =7282 सतीश प्रेमसी एसपी सपा 33053

2002 गुलाब देवी बीजेपी 40288 =700 सतीश प्रेमसी सपा एसपी 39588

1996 (एससी) गुलाब देवी बीजेपी 61382 =33259 करण सिंह बसपा 28123

1993 करण सिंह एसपी 39567 =1108 गुलाब देवी भाजपा 3845 9

1991 गुलाब देवी बीजेपी 29285 =6256 याद राम जेडी 23029

1989 करण सिंह भाजपा 29105 =4627 ब्रिजपाल सिंह जेडी 24478

1985 फूल कुंवर कांग्रेस 16656 =3463 करण सिंह भाजपा भाजपाभाजपा 13193

1980 जिराज सिंह मोरिया इंक (आई) 18138 =6613 ब्रिज पाल सिंह जेएनपी 11525

1 9 77 करण सिंह जेएनपी 17731 =6136 जिराज सिंह कांग्रेस 11595

1974 देवी सिंह बीकेडी 26000 =13390 यशोदा देवी कांग्रेस 12610

1969 इंद्र मोहिनी इंक 22426 =7675 धीरेंद्र सिंह बीजेएस 14751

1969 महावीर सिंह बीकेडी 19984 =9267 राज बहादुर सिंह कांग्रेस 10717

1967 आई मोहनी इंक 12 9 84 =5591 आर.के. सिंह बीजेएस 7393

1967 K.Deo आईएनडी 11,664 =1746 R.Singh कांग्रेस कांग्रेस कांग्रेस 9918

1962 नरेंद्र सिंह इंडे 15853 =6893 देवेंद्र कुमार एसओसी सोसाइटी 8960

विकास कार्य :

2019
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी