अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय निकसार बेगम
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 20 - चौक दक्षिणी
पालिका/परिषद ककराला
ज़िला : बदायूँ
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 -
सम्मान :
माननीय जी से अभी विवरण और सामाजिक कार्य हेतु कोई डोनेशन और जानकारी प्राप्त नहीं हुआ है जल्दी है सम्मानित किया जायेगा

विवरण :

 

नगर पालिका परिषद ककराला के बारे में 

नगर पालिका परिषद में कुल 26771 मतदाता हैं, ककराला नगर में कुल 25 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर माननीय परवीन मुस्लिम जी ने कुल पड़े मत संख्या 17301 में से (6024) 35.77 मत पाकर निर्दलीय समर्थित उम्मीदवार 

2 नजमुल जमा खॉ निर्दलीय (3945) को 1100 अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता 

3- महबूब अहमद खां (निर्दलीय) 2798 मत प्राप्त किये 

५- इन्तखाब (निर्दलीय) 2570 मत प्राप्त कर चौथे न. पर रहीं 

श्रीमती परवीन मुस्लिम जी पूर्व विधायक मुस्लिम खान की धर्म पत्नी हैं जो २००७ में बसपा से उसहैत विधान सभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं जो क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं अपनी जुझरु मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के समस्त वर्गों में अच्छी पकड़ है, क्षेत्रके नागरिक बहुत सम्मान देते हैं,, 

ककराला भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ  जिले में एक नगर है। यह बरेली डिवीजन का है। यह दक्षिण में जिला मुख्यालय बदायूँ से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। म्याँउ से 14 किलोमीटर राज्य की राजधानी लखनऊ से 243 किमी

ककराला का पिन कोड 243637 है और डाकघर का मुख्य कार्यालय ककराला  है।

मोहम्मद गंज (3 किलोमीटर), गहीिया (3 किलोमीटर), कटिया (3 किलोमीटर), सैदपुर (3 किलोमीटर), बेहता डाबरनगर (4 किलोमीटर), पास गांव के ककराला हैं। ककराला जगत ब्लॉक ने उत्तर की ओर, पूर्व में मोयन ब्लॉक, ुसंवा ब्लॉक की ओर दक्षिण की तरफ, बदायूँ ब्लॉक की ओर उत्तरी दिशा में घिरा है।

बदायूँ, सहवार, सोरन, शमसाबाद, फारुखाबाद, शहर के पास ककराला हैं।

ककराला  की जनसांख्यिकी

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है

ककराला  में राजनीति

सपा, कांग्रेस इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं

ककराला  के पास मतदान केंद्र / बूथ

1) आजाद जूनियर हाईस्कूल ककराला साउथ पार्ट आर.एन. 1

2) आजाद जूनियर हाईस्कूल ककराला साउथ पार्ट आर.एन. 2

3) आजाद जूनियर हाईस्कूल ककराला साउथ पार्ट आर.एन. 3

4) आजाद जूनियर हाईस्कूल ककराला साउथ पार्ट आर.एन. 4

5) आजाद जूनियर हाईस्कूल ककराला पश्चिम भाग आर.एन. 6

 

वर्तमान में ककराला (आंवला) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सांसद 

माननीय धर्मेंद्र कुमार = भारतीय जनता पार्टी, संपर्क = 09013869427

 

शेखपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मौजूदा विधायक 

माननीय धर्मेंद्र सिंह शकय बीजेपी , 9719684515

शेखपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल

 

जगत म्याऊं  कादर चौक उज्नी उसावन

शेखपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

 

2012 = आशीष यादव एसपी 68533 = 8252 भागवन सिंह शाक्य  कांग्रेस 60281

2012 विधान सभा चुनाव से पहले शेखूपुर विधानसभा का नाम उसहैत के नाम से जाना जाता था जो परिसीमन में क्षेत्र का नाम बदल दिया गया  विवरण देखें 

2007 = मुस्लिम खान बहुजन समाज पार्टी 46739 =  

2- भगवान सिंह  जनता दल (संयुक्त)41297 

3- आशिष यादव समाजवादी पार्टी 37,319

2002 = आशिष यादव  एसपी 40550 2- मुस्लिम खान  बसपा 32152

1996 = भगवान सिंह  बीएसपी 70010 2- बनवारी सिंह  एस पी 63054

1939 = बनवारी सिंह  एस पी 49763 2- ब्रिजपाल सिंह  बीजेपी  34877

1991 = बनवारी सिंह  जे पी 24340 ब्रिज पाल सिंह बीजेपी  24290

1989 = भगवान सिंह शाक्य  जेडी 51829 परवीन आज़ाद इंक 35089

1985 = निरातोम सिंह  कांग्रेस 21027 ब्रज पाल सिंह  एलकेडी 16500

1 9 80 = फखरे आलम  कांग्रेस (यू) 20852 नरोत्तम सिंह  इंक 20222

1977 =  भगवान सिंह  जेएनपी 20063 फखरे आलम एमएएन 1 9 148

1974 = ब्रिजपाल सिंह बीजेएस 28933 फखरे आलम  कांग्रेस 24208

1969 = नरोत्तम सिंह  कांग्रेस 27777 ब्रिज पाल सिंह  बीजेएस 25877

1967 = बी पी सिंह बीजेएस 19941 एन सिंह एमआरपी 19543

1962 =  नरोत्तम सिंह एम इंड 11521 ब्रिज पाल सिंह एम जे एस 7976

1957 = मोहरिक अली खान एम निर्दलीय 9382 निरातोम सिंह एम बीजेएस 7791

ककराला  तक पहुंचने के लिए कैसे?

रेल द्वारा

10 किमी से कम में ककराला  के नजदीक कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। ककराला  के करीब 59 किलोमीटर दूर बरेली रेलवे स्टेशन का प्रमुख रेलवे स्टेशन है?

शहरों के पास

बदायूँ 20 किलोमीटर 

सहवार 40 के.एम. 

सोरोन 48 किलोमीटर

शमसाबाद, फर्रुखाबाद 51 किलोमीटर 

तालुक से करीब

म्याऊं 13 किमी 

कादर चौक 13 किलोमीटर

जगत 14 किलोमीटर 

उसावां 17 किलोमीटर

हवाई अड्डा के निकट

पंतनगर हवाई अड्डा 145 किमी 

खेरिया हवाई अड्डा 164 के.एम.

ग्वालियर एयरपोर्ट 225 के.एम. 

कानपुर हवाई अड्डा 228 के.एम. 

पर्यटन स्थल के पास

अलीगढ़ 123 के.एम. 

मोरादाबाद 125 के.एम. 

कन्नौज 12 9 के.एम. 

खातिमा 153 के.एम. 

आगरा 158 के.एम. 

जिले से पास

बदायूँ 19 किलोमीट

काशीराम नगर 62 किलोमीटर 

बरेली 64 के.एम. 

एटा  72 के.एम. 

रेलवे स्टेशन से करीब

आंवला रेलवे स्टेशन करीब 50 किलोमीटर

पितंबरपुर रेल वे स्टेशन 53 किलोमीटर

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी