अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय परवीन बेगम
पद : नगर पालिका अध्यक्षा
वॉर्ड : 00 नगर
पालिका/परिषद खुर्जा
ज़िला : बुलंदशहर
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : बहुजन समाज पार्टी
चुनाव : 2017 - 49413 = 19157 वोट
सम्मान :
माननीय नगर पालिका अध्यक्ष जी को निकाय चुनाव २०१७ में विजेता चुने जाने के उपरान्त नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति (NGO) नई दिल्ली द्वारा www.njssamiti.com पर जनप्रतिनिधि डिजिटल रिकॉर्ड में शामिल कर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है, संस्था आशा और कामना करती है बिना भेदभाव समस्त क्षेत्र का विकास करेंगे एवं संस्था को सामाजिक कार्य में डोनेशन देकर सहयोग करने के लिए धन्यबाद - मेहनाज़ अंसारी (जनरल सक्रेटरी)

विवरण :

introduction

Honorable Parveen Begam

Chairman

Municipality Council Khurja

District - Bulandshahr

State - Uttar Pradesh

Mob - 8630034709

Merit - Junior High Schools

Support - Bahujan Samaj Party

नगर पालिका परिषद के बारे में खुर्जा के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 80170 मतदाता हैं, खुर्जा नगर में कुल 25 वार्ड हैं। निकाय 2017 में चुनाव में बहुजन समाज पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर माननीय परवीन बेगम जी ने कुल पड़े मत संख्या 49413 से (19157) 40.53 मत पकर भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार

2 विनीता गर्ग = भारतीय जनता पार्टी (14231) 30.11 से 5000 अधिक मतों से हराकर चुनाव जीत

3- विमला = भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (10252) 21.6 9 मत मिले

4 - सरोज गुप्ता (1 9 73) 4.17 मत प्राप्त कर चौथी न पर रहीं

माननीय परवीन बेगम जी पूर्व अध्यक्ष रफीक फद्दा की धर्म पत्नी हैं जो 2012 में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर चुने गए क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं, उनके मुकाबले में मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के सभी वर्गों में अच्छी पकड़ है, क्षेत्र के नागरिक बहुत सम्मान देते हैं, ,

 

खुर्जा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के खुर्जा एक शहर है। यह मेरठ डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह दक्षिण की तरफ 17 ​​किमी स्थित है, जिला मुख्यालय बुलंदशहर से है। यह एक ब्लॉक हेड क्वॉर्टर है

खुर्जा ग्राम पिन कोड 203131 और डाक मुख्य कार्यालय खुर्जा है।

हसांगढ़ (1 किलोमीटर), हजरतपुर (1 किलोमीटर), अग्रवाल (3 किलोमीटर), तालिबपुर (3 किलोमीटर), मुंडा खेड़ा (3 किलोमीटर), खुर्जा से पास के गांव हैं। खुर्जा ग्राम में अरायना ब्लॉक दक्षिण की तरफ, बुलंदशहर ब्लॉक उत्तर की ओर, पूर्व में शिकारापुर ब्लॉक, सिकंदराबाद ब्लॉक की ओर उत्तर दिशा में है।

 

बुलंदशहर, शिकपुर, बुलंदशहर, सिकंदराबाद, ग्रेटर नोएडा, खुर्जा से निकटतम शहर हैं।

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है

रेल द्वारा

खुर्जा सिटी रेल वे स्टेशन, मामन रेलवे स्टेशन खुर्जा ग्रामीण से बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। अलीगढ़ रेलवे स्टेशन प्रमुख रेलवे स्टेशन खुर्जा के करीब 52 किलोमीटर दूर है

 

शहरों के पास

बुलंदशहर 16 किलोमीटर 

शिकारपुर, बुलंदशहर 17 किलोमीटर

सिकंदराबाद 28 के.एम. 

ग्रेटर नोएडा 45 के.एम. 

तालुक से करीब

खुर्जा 7 किमी के पास

अरनिया 15 किलोमीटर

बुलंदशहर  15 किलोमीटर 

शिकारपुर 18 किलोमीटर

हवाई बंदरगाहों के निकट

इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 90 के.एम. 

खेरिया हवाई अड्डा 138 के.एम. 

मुज़फ्फरनगर एयरपोर्ट 146 के.एम.

पंतनगर हवाई अड्डा 200 किमी 

पर्यटन स्थल के पास

बुलंदशहर 16 किलोमीटर

अलीगढ़ 54 किलोमीटर 

फरीदाबाद 63 किलोमीटर

सूरजकुंड 65 के.एम. 

नोएडा 69 के.एम. 

जिले से पास

बुलंदशहर 16 किलोमीटर

गौतम बुद्ध नगर 39 किलोमीटर

अलीगढ़ 52 किलोमीटर

पलवल 61 के.एम. 

रेलवे स्टेशन से करीब

खुर्जा शहर रेलवे स्टेशन 3.2 के.एम. 

मामन रेल वे स्टेशन 8.1 के.एम. 

सिकंदरपुर रेलवे स्टेशन 9.2 के.एम. 

खुर्जा जंक्शन रेल वे स्टेशन 9 किलोमीटर 

अलीगढ़ जेएन रेल वे स्टेशन करीब 52 किलोमीटर 

 

खुर्जा विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों

भाजपा, बसपा, कांग्रेस खुर्जा विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।

एलकेडी, कांग्रेस (आई), जेडी, बीकेडी, बीजेएस, जेएनपी (एससी), पीएसपी, जेएनपी, सपा, पिछले सालों में लोकप्रिय राजनीतिक पार्टियां हैं।

 

खुर्जा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मौजूदा  विधायक

माननीय विजेंद्र सिंह (बीजेपी) 8126580451

खुर्जा के लोकसभा क्षेत्र के मौजूदा सांसद 

माननीय डा. महेश शर्मा (बीजेपी) 09873444255

खुर्जा नगर पालिका क्षेत्र के मौजूदा चेयरमैन 

माननीय परवीन बेगम (बसपा) 8630034709

 

खुर्जा विधानसभा क्षेत्र में मंडल

अरनी, बुलंदशहर, खुर्जा, पहसु, शिरपुर,

खुर्जा विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

 

2012  बंशी सिंह पहाडि कांग्रेस 98913 = 37304 होराम सिंह बसपा  61609

2007  अनिल कुमार बीएसपी 37807 = 17070 वेद पाल सिंह भाजपा  20737

2002  अनिल कुमार बीएसपी 28494 = 7051 हरपाल सिंह भाजपा 21443

1996 हरपाल सिंह भाजपा 50333 = 20848 रवींद्र उर्फ ​​पप्पन राघव बसपा  29485

1993  हरपाल सिंह भाजपा 49243 = 14427 अलाउद्दीन बसपा 34816

1991  हरपाल निर्दलीय  34549 14352 अलाउद्दीन बसपा 20197

1989 स्वर्ण राघव उर्फ ​​पप्पान जेडी 35584 2701 अखलेश चंद दास कांग्रेस 32883

1985  बुद्धपाल सिंह खुर्जा वाला कांग्रेस 27812 = 3291 सुरेंद्र शर्मा एलकेडी  24521

1980 भूत भूपल सिंह कांग्रेस (आई) 17903 = 2512 सुरेंद्र शर्मा जेएनपी  15391

1977  बनारसी दास जेएनपी 37138 = 17927 ईश्वरी सिंह कांग्रेस 19211

1974 ईश्वरी सिंह इंक 23833 = 4294 महमूद एच। खान बीकेडी 1 9 53

1969 रघुराज सिंह बीकेडी 22431 = 8466 सुखबीर सिंह बीजेएस  13 9 65

1967  B.Dass कांग्रेस 19,570 = 1221 R.Singh PSP 18349

1962  महाबीर सिंह कांग्रेस 8972 = 397 महमूद हसन पीएसपी  8575

1957 गोपाल  निर्दलीय 30228 = 1672 केवल सिंह कांग्रेस  28556

1957 छतरर सिंह निर्दलीय  30839 = 2209 भीम सेन कांग्रेस 28548

1951  भीम सेन कांग्रेस 45459 = 27709 ईश्वरी सिंह 17750

1951  भटनागर, किशन सारक कांग्रेस 48597 = 27082 गोपी   21515

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी