अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : अनूप सिंह भडाना
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 44
पालिका/परिषद लोनी
ज़िला : गाजियाबाद
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 -
सम्मान :
माननीय जी से अभी विवरण और सामाजिक कार्य हेतु कोई डोनेशन और जानकारी प्राप्त नहीं हुआ है जल्दी है सम्मानित किया जायेगा

विवरण :

 

नगर पालिका परिषद लोनी के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 409183 मतदाता हैं, लोनी नगर में कुल 55  वार्ड हैं। निकाय 2017 में चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर माननीय रंजीता धामा जी ने कुल पड़े मत संख्या 205089 से (81709) 42.12 मत पकर समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवार

2 - मेहरीन = समाजवादी पार्टी (47759) 24.62 से 34000  अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता 

3- विमला मावी = निर्दलीय (19933) 10.28 मत मिले

4 - अंजू चौधरी = बहुजन समाज पार्टी (19582) 10.09 मत प्राप्त कर चौथी न पर रहीं

लोनी नगर के बारे में

लोनी उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के गाजियाबाद जिले में एक नगर है। लोनी ब्लॉक मुख्यालय लोनी शहर है यह मेरठ डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय गाजियाबाद से उत्तरी दिशा में 14 किमी स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से पूर्व की ओर 484 किलोमीटर

लोनी ब्लॉक को खेड़का ब्लॉक की तरफ उत्तर की तरफ, उत्तर-पूर्व दिल्ली ब्लॉक की तरफ दक्षिण की ओर, गाजियाबाद ब्लॉक की ओर दक्षिण की तरफ, पूर्वी दिल्ली ब्लॉक की तरफ दक्षिण की तरफ। लोनी शहर, गाजियाबाद शहर, मुरादनगर शहर, दिल्ली शहर, लोनी से पास के शहर हैं।

यह 212 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है। यह स्थान गाजियाबाद जिले और उत्तर दिल्ली जिले की सीमा में है। उत्तर दिल्ली जिला उत्तर दिल्ली इस जगह की ओर पश्चिम है। इसके अलावा यह अन्य जिला दिल्ली की सीमा में है। यह दिल्ली राज्य सीमा के पास है

दिल्ली (दिल्ली), नोएडा, सूरजकुंड, फरीदाबाद, मेरठ, महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास हैं।

लोनी नगर पालिका की जनसांख्यिकी

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू बोलते हैं

लोनी ब्लॉक के मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है लोनी गर्मियों में उच्चतम तापमान 23 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस के बीच है।

जनवरी के औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 17 डिग्री सेल्सियस, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 29 डिग्री सेल्सियस, मई 34 डिग्री सेल्सियस रहा है

लोनी नगर कैसे पहुंचें

रेल द्वारा

नाली रेलवे स्टेशन, नारुराबादबाद रेल मार्ग स्टेशन लोनी ब्लॉक के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। गाजियाबाद रेलवे स्टेशन लोनी से करीब 16 किलोमीटर दूर एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है

लोनी ब्लॉक के पिन कोड

201003 (मेरठ रोड), 201001 (गाजियाबाद), 245101 (हापुर), 245304 (पिलखौवा पोस्ट ऑफिस), 201102 (ट्रोनिका सिटी)

आस पास के शहर

लोनी 0 के.एम. 

गाजियाबाद 14 किलोमीटर

मुरादनगर 18 किलोमीटर

दिल्ली 21 किलोमीटर

तालुक द्वारा पास

लोनी 0 के.एम. 

खेकर 10 के.एम. 

उत्तर पूर्वी दिल्ली  11 किलोमीटर

गाजियाबाद 14 किलोमीटर 

एयर पोर्ट्स के पास

इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 36 के.एम. 

मुज़फ्फरनगर हवाई अड्डा 91 किलोमीटर 

देहरादून हवाई अड्डा 207 किलोमीटर 

खेरिया हवाई अड्डा 210 के.एम.

जिले से पास

उत्तर पूर्वी दिल्ली के पास 8 किमी

गाजियाबाद 13 किलोमीटर दूर

उत्तर दिल्ली 16 किलोमीटर दूर

रेलवे स्टेशन के पास 

मध्य दिल्ली के करीब 19 किलोमीटर

नोली रेल वे स्टेशन 3.7 किलोमीटर 

नारुराबाद खान रेलवे स्टेशन करीब 4.2 किलोमीटर

बेहता हाजीपुर एच रेलवे स्टेशन 6.5 किलोमीटर

साहिबाबाद रेलवे स्टेशन 11 किलोमीटर 

दिल्ली शाहदरा रेलवे स्टेशन 12 किलोमीटर

लोनी विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल

आरओडी, बसपा, बीजेपी,सपा,कांग्रेस लोनी विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।

लोनी विधानसभा क्षेत्र में मौजूदा विधायक

माननिय नंदकिशोर (बीजेपी)9718182518

लोनी क्षेत्र में  लोकसभा मौजूदा  

माननीय विजय कुमार सिंह (बीजेपी) 08826611111(M)

लोनी नगर पालिका क्षेत्र में मौजूदा चैयरमैन 

माननीय रंजीता धामा (बीजेपी) 9717956104

लोनी विधानसभा क्षेत्र में मंडल

लोनी

लोनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012 ज़किर अली बसपा 89603 = 25248 मदन भैया आरएलडी  64355

लोनी विधानसभा क्षेत्र पहले खेड़का विधान सभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था जो वर्ष 2012 चुनाव में परिसीमन में लोनी विधान सभा के नाम से क्षेत्र का गठन हुआ लोनी का 2007 से पहला रिकॉर्ड 

 

2007  मदन भैया  आरएलडी 63469 च। करर सिंह बसपा 51 9 34

2002  मदन भैया  53963, Samsad  बसपा 41407

1996  रूप चौधरी  बीजेपी 72106 मदन भैया  सपा 47146

1993 मदन भैया पुरुष सपा 67385 रूप चौधरी भाजपा 51760

1991 मदन भैया जीपी 49113 बेल ग्वार्ट बलराज सिंह जेडी 21704

1989 रिचपाल सिंह बंसल नर जेडी 35 9 48 मदन नर इंडस्ट्रीज़ 33471

1985 रिचपाल पाल सिंह बंसल  एलकेडी 28027 राम फाल कांग्रेस 1957

1980 चंद्र सिंह कांग्रेस (आई) 33704 जय करण जेएनपी 18952

1977  छज्जू सिंह नर जेएनपी 29035 चांद्र नर इंडे 20766

1974 छज्जू सिंह माले बीकेडी 27288 बिस्मरर सिंह कांग्रेस 23281

1969 नायपल बीकेडी 28308 मैन सिंह  कांग्रेस 23537

1967पी। सिंध नर कांग्रेस 20710 बी.एसंघ सीपीआई 12459

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी