वासुदेव बलवंत फडके ब्लॉक अध्यक्ष/ बी.डी.सी. सदस्य परिचय सूची

नाम : माननीय गुरुमुख सिंह
पद : ब्लॉक प्रमुख
वॉर्ड : 00
ब्लॉक काशीपुर
ज़िला : उधमसिंह नगर
राज्य : उत्तराखंड
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2014 na वोट
सम्मान :
माननीय जी ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एवं स्वच्छ भारत अभियान में पंचायत के युवाओं को संस्था के माध्यम से जागरूक करने में अपना पूर्ण योगदान दिया है, संस्था को सामाजिक कार्यों में सहयोग देने के उपरान्त संस्था द्वारा ब्लॉक प्रमुख जी का पूर्ण विवरण विकास कार्य सहित भारतीय डिजिटल रिकॉर्ड में दर्ज कर वासुदेव बलवंत फड़के बी डी सी मेंबर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है = मेहनाज़ अंसारी (संस्थापक)

विवरण :

introduction

Honorable Gurumukh Singh

Post :   Block Prmukh

Ward No. : 00

Block - Kashipur

District -Udhamsingh Nagar

State - Utrakhand

Supporters -INd

Eligibility - NA

Mobile no. - NA

काशीपुर ब्लॉक के बारे में

काशीपुर भारत के उत्तराखंड राज्य के उधम सिंह नगर जिले में एक ब्लॉक है। जिसमे ३९ ग्राम पंचायत हैं एवं ४० क्षेत्र पंचायत सदस्य बी डी सी मेंबर मनोनीतhain  राज्य की राजधानी देहरादून से उत्तर में 181 किमी।

काशीपुर शहर पूर्व में बाजपुर ब्लॉक, पश्चिम की ओर जसपुर ब्लॉक, उत्तर की ओर रामनगर ब्लॉक, पश्चिम की ओर ठाकुरवाड़ा ब्लॉक से घिरा हुआ है। काशीपुर सिटी, बाजपुर सिटी, जसपुर सिटी, सुअर सिटी काशीपुर के नजदीकी शहर हैं।

यह 228 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है। यह जगह उदम सिंह नगर जिले और मोरादाबाद जिले की सीमा में है। मोरादाबाद जिला ठाकुरद्वारा इस जगह की ओर पश्चिम है। यह उत्तर प्रदेश राज्य सीमा के नजदीक है।

काशीपुर, रामनगर, कॉर्बेट नेशनल पार्क (जिम कॉर्बेट), मोरादाबाद, नैनीताल देखने के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के निकट हैं।

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है। लोग भी उर्दू बोलते हैं।

काशीपुर शहर में राजनीति

बीजेपी, एसपी, आईएनसी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।

काशीपुर शहर में विधानसभा क्षेत्र हैं।

काशीपुर विधानसभा क्षेत्र वर्तमान विधायक

माननीय हरभजन सिंह चीमा, भजपा 

काशीपुर शहर नैनीताल-उधमसिंह नगर संसद निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है,  मौजूदा सांसद

माननीय  भगत सिंह कोष्यारी भाजपा 

काशीपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल 

जसपुर, काशीपुर

काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012  हरभजन सिंह चीमा बीजेपी 31734 = 2382 मनोज जोशी कांग्रेस  29352

2007  हरभजन सिंह चीमा बीजेपी 31756 = 15461 मोहम्मद। जुबैर सपा सपा सपा 16,295

2002  हरभजन सिंह चीमा बीजेपी 18396 = 195 के.सी.सिंह बाबा कांग्रेस 18201

काशीपुर शहर का मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है। काशीपुर गर्मी का सबसे ऊंचा दिन तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस के बीच है।

जनवरी का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्सियस है, फरवरी 16 डिग्री सेल्सियस है, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस है, अप्रैल 28 डिग्री सेल्सियस है, मई 33 डिग्री सेल्सियस है।

काशीपुर शहर कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

काशीपुर रेल वे स्टेशन, अलीई रेल वे स्टेशन काशीपुर शहर के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। कैसे मोरादाबाद रेल वे स्टेशन काशीपुर के पास 52 किलोमीटर के प्रमुख रेलवे स्टेशन है

काशीपुर शहर के पिन कोड

244712 ​​(जसपुर), 244713 (किला स्ट्रीट)

 

आस पास के शहर

काशीपुर 3 किमी 

बाजपुर 17 किमी 

जसपुर 20 किमी 

ब्लॉक के पास 

काशीपुर 0 किलोमीटर 

बाजपुर 18 किमी 

जसपुर 1 9 किलोमीटर 

ठाकुरद्वारा 21 किलोमीटर 

एयर पोर्ट्स के पास 

पंतनगर हवाई अड्डे के पास 55 किलोमीटर 

मुजफ्फरनगर हवाई अड्डे के पास 147 किमी

देहरादून हवाई अड्डा 173 किलोमीटर 

इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास 222 किलोमीटर 

जिलों के पास

रामपुर 49 किमी 

उदम सिंह नगर 51 किलोमीटर 

मोरादाबाद 52 किमी 

रेलवे स्टेशन के पास 

नैनिटल 55 किलोमीटर

काशीपुर रेलवे स्टेशन 4.5 किलोमीटर 

अलई रेल वे स्टेशन 7.3 किलोमीटर 

ज़ोहरा रेलवे स्टेशन 45 किलोमीटर

रुद्रपुर सिटी रेल वे स्टेशन 50 किलोमीटर 

विकास कार्य :

2019

वासुदेव बलवन्त फड़के जीवनी
पूरा नाम - वासुदेव बलवन्त फड़के
जन्म - 4 नवम्बर, 1845 ई.
जन्म भूमि - शिरढोणे गांव, रायगड ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु - 17 फ़रवरी, 1883 ई.
कर्म भूमि - भारत
प्रसिद्धि - स्वतंत्रता सेनानी
नागरिकता - भारतीय

वासुदेव बलवन्त फड़के (अंग्रेज़ी:Vasudev Balwant Phadke, जन्म- 4 नवम्बर, 1845 ई. 'महाराष्ट्र' तथा मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1883 ई. 'अदन') ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। वासुदेव बलवन्त फड़के का जन्म महाराष्ट्र के रायगड ज़िले के 'शिरढोणे' नामक गांव में हुआ था। फड़के ने 1857 ई. की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिंंनगारी जलायी थी। देश के लिए अपनी सेवाएँ देते हुए 1879 ई. में फड़के अंग्रेज़ों द्वारा पकड़ लिये गए और आजन्म कारावास की सज़ा देकर इन्हें अदन भेज दिया गया। यहाँ पर फड़के को कड़ी शारीरिक यातनाएँ दी गईं। इसी के फलस्वरूप 1883 ई. को इनकी मृत्यु हो गई। परिचय
वासुदेव बलवन्त फड़के बड़े तेजस्वी और स्वस्थ शरीर के बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। कल्याण और पूना में उनकी शिक्षा हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें और पढ़ाई छोड़ दें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए। वहाँ पर जी.आर.पी. में बीस रुपए मासिक की नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। 28 वर्ष की आयु में फड़के की पहली पत्नी का निधन हो जाने के कारण इनका दूसरा विवाह किया गया।
व्यावसायिक जीवन
विद्यार्थी जीवन में ही वासुदेव बलवन्त फड़के 1857 ई. की विफल क्रान्ति के समाचारों से परिचित हो चुके थे। शिक्षा पूरी करके फड़के ने 'ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे' और 'मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट', पूना में नौकरी की। उन्होंने जंगल में एक व्यायामशाला बनाई, जहाँ ज्योतिबा फुलेभी उनके साथी थे। यहाँ लोगों को शस्त्र चलाने का भी अभ्यास कराया जाता था। लोकमान्य तिलक ने भी वहाँ शस्त्र चलाना सीखा था।
गोविन्द रानाडे का प्रभाव
1857 की क्रान्ति के दमन के बाद देश में धीरे-धीरे नई जागृति आई और विभिन्न क्षेत्रों में संगठन बनने लगे। इन्हीं में एक संस्था पूना की 'सार्वजनिक सभा' थी। इस सभा के तत्वावधान में हुई एक मीटिंग में 1870 ई. में महादेव गोविन्द रानाडे ने एक भाषण दिया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अंग्रेज़ किस प्रकार भारत की आर्थिक लूट कर रहे हैं। इसका फड़के पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे नौकरी करते हुए भी छुट्टी के दिनों में गांव-गांव घूमकर लोगों में इस लूट के विरोध में प्रचार करते रहे।
माता की मृत्यु
1871 ई. में एक दिन सायंकाल वासुदेव बलवन्त फड़के कुछ गंभीर विचार में बैठे थे। तभी उनकी माताजी की तीव्र अस्वस्थता का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि 'वासु' (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे। इस वेदनापूर्ण तार को पढ़कर अतीत की स्मृतियाँ फ़ड़के के मानस पटल पर आ गयीं और तार लेकर वे अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए सतत प्रयासरत रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने अवकाश नहीं दिया, लेकिन वासुदेव बलवन्त फड़के दूसरे दिन अपने गांव चले आए। गांव आने पर वासुदेव पर वज्राघात हुआ। जब उन्होंने देखा कि उनका मुंह देखे बिना ही तड़पते हुए उनकी ममतामयी माँ चल बसी हैं। उन्होंने पांव छूकर रोते हुए माता से क्षमा मांगी, किन्तु अंग्रेज़ी शासन के दुव्यर्वहार से उनका हृदय द्रवित हो उठा।
सेना का संगठन
इस घटना के वासुदेव फ़ड़के ने नौकरी छोड़ दी और विदेशियों के विरुद्ध क्रान्ति की तैयारी करने लगे। उन्हें देशी नरेशों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी। उन्होंने फ़रवरी 1879 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। धन-संग्रह के लिए धनिकों के यहाँ डाके भी डाले। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया। किन्तु उन्हें नवयुवकों के व्यवहार से आशा की कोई किरण नहीं दिखायी पड़ी। कुछ दिनों बाद 'गोविन्द राव दावरे' तथा कुछ अन्य युवक उनके साथ खड़े हो गए। फिर भी कोई शक्तिशाली संगठन खड़ा होता नहीं दिखायी दिया। तब उन्होंने वनवासी जातियों की ओर नजर उठायी और सोचा आखिर भगवान श्रीराम ने भी तो वानरों और वनवासी समूहों को संगठित करके लंका पर विजय पायी थी। महाराणा प्रताप ने भी इन्हीं वनवासियों को ही संगठित करके अकबर को नाकों चने चबवा दिए थे। शिवाजी ने भी इन्हीं वनवासियों को स्वाभिमान की प्रेरणा देकर औरंगज़ेब को हिला दिया था।
ईनाम की घोषणा
महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन मंत्रणा करने के लिए विश्राम बाग़ में इकट्ठा थे। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी। 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर 'रिचर्ड' का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।
गिरफ़्तारी
1857 ई. में अंग्रेज़ों की सहायता करके जागीर पाने वाले बड़ौदा के गायकवाड़ के दीवान के पुत्र के घर पर हो रहे विवाह के उत्सव पर फड़के के साथी दौलतराम नाइक ने पचास हज़ार रुपयों का सामान लूट लिया। इस पर अंग्रेज़ सरकार फड़के के पीछे पड़ गई। वे बीमारी की हालत में एक मन्दिर में विश्राम कर रहे थे, तभी 20 जुलाई, 1879 को गिरफ़्तार कर लिये गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजन्म कालापानी की सज़ा देकर फड़के को 'अदन' भेज दिया गया।
निधन
अदन पहुँचने पर फड़के भाग निकले, किन्तु वहाँ के मार्गों से परिचित न होने के कारण पकड़ लिये गए। जेल में उनको अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गईं। वहाँ उन्हें क्षय रोग भी हो गया और इस महान् देशभक्त ने 17 फ़रवरी, 1883 ई. को अदन की जेल के अन्दर ही प्राण त्याग दिए।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फडके के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी