अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : मा. अख्तर हुसैन
पद : नगर पालिका सभासद
वॉर्ड : 07
पालिका/परिषद डुमराव
ज़िला : बक्सर
राज्य : बिहार
पार्टी : राष्ट्रीय जनता दल
चुनाव : 2016 1039/450 वोट
सम्मान :
माननीय जी को निकाय चुनाव 2018 में विजेता चुने जाने के उपरान्त नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति (NGO) नई दिल्ली द्वारा www.njssamiti.com पर जनप्रतिनिधि डिजिटल रिकॉर्ड में शामिल कर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है, संस्था आशा और कामना करती है बिना भेदभाव समस्त क्षेत्र का विकास करेंगे एवं संस्था को सामाजिक कार्य महापुरुषों की जीवनी समाज तक पहुंचाने के लिए माननीय जी को शहीद अशफाक उल्लाह खां नगर पालिका अध्यक्ष / सभासद सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है - मेहनाज़ अंसारी (जनरल सक्रेटरी)

विवरण :

Introduction 

Honorable Akhtar Husain

Designation : Member 

Ward No. : 07 

Municipal Council Dumraon

Disst :  Buxar

State - Bihar

Mob - 9431682699

Eligibility - Diploma 

Support - RJD

 

वार्ड न.  07 के बारे में 

नगर पालिका के वार्ड १० में कुल 2200 मतदाता हैं ,निकाय चुनाव 2016 में वार्ड से राष्ट्रीय जनता दल  समर्थित माननीय अख्तर हुसैन को कुल पड़े मत

 संख्या 1039 में से 450 मत पाकर निकटतम  प्रत्याशी 

2 - शिव शम्भु खरवार =   निर्दलीय (376)  मत प्राप्त कर दूसरे न. 

3 - परशु राम प्रसाद, = निर्दलीय (131)  मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे 

माननीय   अख्तर हुसैन 70 से अधिक मतों से जीतकर सभासद पद पर  विजय  हासिल की 

डुमराव नगर पालिका के बारे में

डुमराव भारत के बिहार राज्य के बक्सर जिले में एक नगर है। डुमराव पालिका हेडक्वार्टर डुमराव शहर है। यह पटना डिवीजन से संबंधित है। यह जिला मुख्यालय बक्सर से पूर्व की ओर 22 किमी स्थित है। राज्य की राजधानी पटना से पूर्व की ओर 115 किमी।

डुमराव ब्लॉक पूर्व की तरफ चौगेन ब्लॉक, पूर्व की ओरथ ब्लॉक, पश्चिम की ओर इटारि ब्लॉक, उत्तर की ओर सिमरी ब्लॉक से घिरा हुआ है। दुमराओन सिटी, बक्सर सिटी, बलिआ सिटी, जगदीसपुर शहर दुमराओन के नजदीकी शहर हैं।

डुमराव में 78 गांव और 17 पंचायत शामिल हैं। हाकिमपुर सबसे छोटा गांव है और भोजपुर कादीम सबसे बड़ा गांव है। यह 70 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है। यह जगह बक्सर जिला और बलिआ जिले की सीमा में है। बलिया जिला सोहनव इस जगह की ओर उत्तर है। यह उत्तर प्रदेश राज्य सीमा के नजदीक है।

सासरम, गोलघर (गोल घर), पटना, रोहतसगढ़ किला, तख्त श्री पटना साहिब देखने के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के निकट हैं।

डुमराव ब्लॉक की जनसांख्यिकी

मैथिली यहां स्थानीय भाषा है। लोग भी हिंदी बोलते हैं, उर्दू। Dumraon ब्लॉक की कुल आबादी 198,925 26,988 सदनों में रहती है, कुल 78 गांवों और 17 पंचायतों में फैली हुई है। पुरुष 105,428 हैं और महिलाएं 93,497 हैं

ग्रामीण इलाकों में कुल 45,806 लोग रहते हैं और 153,11 9 लोग रहते हैं।

डुमराव में राजनीति

जेडी (यू), आरएलएसपी, बीजेपी, आरजेडी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।

डुमराव  बक्सर संसद निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, मौजूदा  सांसद

माननीय अश्विनी कुमार चौबे बीजेपी संपर्क न. 

डुमराव विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, मौजूदा विधायक 

माननीय दद्दन यादव जेडी (यू) संपर्क न. 9431027411

डुमराव विधानसभा क्षेत्र में मंडल।

चौगेन डुमरांव  इटारि नवनगर राजपुर

डुमरांव  विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक विधायक का इतिहास।

2015  दादान यादव जेडी (यू) 81081 = 3033 9 राम बिहारी सिंह आरएलएसपी 50742

2010  डॉ दाउद अली जेडी (यू) 42538 = 1946 सुनील कुमार आरजेडी 22692

2005  दादान सिंह एजेवीडी 31089 = 8505 रामबीहारी सिंह जेडी (यू) 22584

2005  दादान सिंह एसपी 28544 = 9419 अनुराधा देवी एपी 19125

2000  ददन सिंह  निर्दलीय  29900 = 7871 राम बिहारी सिंह एसएपी 22029

1995  बसंत सिंह जेडी 38754 = 22621 बाईस मुनी सिंह सीपीआई(एमएल)16133

1990  बसंत सिंह जेडी 32590 = 1162 सूरज प्रसाद सीपीआई 31428

1985  बसंत सिंह कांग्रेस  41046 = 25248 राम अश्रे सिंह सीपीआई 15798

1981  V.N.Bharti कांग्रेस 24,881 = 6114 र.ा.सिंह  भाकपा 18,767

1980  राजा राम आर्य कांग्रेस 294242 = 6500 राम आचार्य सिंह सीपीआई 23442

1 9 77  रामश्रे सिंह सीपीआई 28500 = 9825 हरिहर सिंह जेएनपी 18675

1972  हरिहर प्रसाद सिंह एनसीओ 25238 = 423 सत्य नारायण प्रसाद सीपीआई 24815

1967 जेएन एच पी सिंह निर्दलीय 14539 = 2791 एस प्रसाद सीपीआई 11748

1962  कुमार गंगा प्रसाद सिंह कांग्रेस 12466 = 2523 विश्वनाथ सिंह एसडब्ल्यूए  9943

1957 गंगा प्रसाद सिंह कांग्रेस 7427 = 759 विश्वनाथ पीडी। सिंह CNPSPJP  6668

1951 हरिहर प्रसाद सिंह कांग्रेस 6629 = 3207 अंबिका ठाकुर निर्दलीय 3422

डुमराँव का मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है। डुमराव गर्मियों में सबसे अधिक दिन का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच है।

जनवरी का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्सियस है, फरवरी 1 9 डिग्री सेल्सियस है, मार्च 25 डिग्री सेल्सियस है, अप्रैल 30 डिग्री सेल्सियस है, मई 32 डिग्री सेल्सियस है।

डुमराव कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

डुमरांव रेलवे स्टेशन, ट्विनिंग गंज रेल वे स्टेशन डुमरांव  पास के रेलवे स्टेशन हैं। डुमराव  रेल वे स्टेशन (डुमराव  के नजदीक), ट्विनिंग गंज रेल वे स्टेशन (डुमराव  के नजदीक) रेलवे स्टेशनों के पास से शहरों के नजदीक पहुंचने योग्य हैं। बक्सर रेल वे स्टेशन डमराओन के नजदीक 1 9 किलोमीटर का प्रमुख रेलवे स्टेशन है

रास्ते से

शहरों के नजदीक

डुमराव  0 किमी निकट

बक्सर 18 किलोमीटर के पास

बलिआ 24 किलोमीटर निकट है

जगदीसपुर 31 किमी निकट

प्रखंड के पास

डुमराव  4 किमी निकट

चौगाईं  9 किमी निकट

सिमरी 10 किमी निकट

केशथ 17 किमी निकट

एयर पोर्ट्स के पास

पटना हवाई अड्डा 105 किलोमीटर दूर है

गया हवाई अड्डे 134 किमी निकट

वाराणसी हवाई अड्डे 146 किलोमीटर निकट है

गोरखपुर हवाई अड्डे के पास 168 किलोमीटर 

पर्यटक स्थलों के पास

सासरम 75 किलोमीटर दूर

गोल्गर 111 किमी निकट

पटना 111 केएम पास

तख्त श्री पटना साहिब 114 किमी निकट

आगम कुआं 117 किमी 

जिलों के पास

बक्सर 20 किलोमीटर निकट है

बलिआ 24 किलोमीटर निकट है

भोजपुर 57 किलोमीटर दूर है

गाजीपुर 64 किमी निकट

रेलवे स्टेशन के पास

डुमराव  रेल वे स्टेशन 2.9 किमी निकट

ट्विनिंग गंज रेल वे स्टेशन 8.4 किलोमीटर दूर है

रघुनाथपुर रेल वे स्टेशन 17 किलोमीटर

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी