सर छोटूराम ग्राम प्रधान /सरपंच/मुखिया परिचय सूची

नाम : मा. गोपीनाथ किरण बुलबुले
पद : सरपंच
वॉर्ड : 00
पंचायत  पटोडा (ख)
ब्लॉककिनवत
ज़िला : नांदेड
राज्य : महाराष्ट्र
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2015 na वोट
सम्मान :
NA

विवरण :

Serpanch Name : Mr Gopinath kiran Bulbule

Panchayat Name : Patoda (kh) (पाटोदा (kh)

Supporter : NA

Mobail no. : NA

Taluka Name : Kinwat

District : Nanded 

State : Maharashtra 

Region : Marathwada 

Division : Aurangabad 

Language : Andh and Indo-aryan,marathi,punjabi,urdu 

Current Time 07:11 PM

Date: Sunday , Oct 14,2018 (IST)

Telephone Code / Std Code: 02469 

 

Assembly constituency : Umarkhed assembly constituency 

Assembly MLA : Rajendra Waman Najardhane (BJP) Contact Number: 9011414111

Lok Sabha constituency : Hingoli parliamentary constituency 

Parliament MP : Rajeev Shankarrao Satav (Congres) Contact Number: 09422170232, 

Pin Code : 431811 

Post Office Name : Gokunda

correct Pin Code

 

 पटोडा (ख) के बारे में 

पटोडा (ख) महाराष्ट्र राज्य के नांदेड जिले के किनवत तालुका का एक गांव है। यह मराठवाड़ा क्षेत्र से संबंधित है। यह औरंगाबाद डिवीजन से संबंधित है। यह नांदेड जिला मुख्यालय से पूर्व की तरफ 124 किलोमीटर दूर स्थित है। राज्य की राजधानी मुंबई से 658 किमी

पटोडा (ख) पिन कोड 431811 है और पोस्टल हेड ऑफिस गोकुंडा है

पटोडा (ख) पूर्व में तालामुदुगु तालुका से घिरा हुआ है, पूर्व में तमसी तालुका, पूर्व में बाज़ारहरूर तलुका, उत्तर की ओर महूर तालुका से घिरा हुआ है।

आदिलबाद, उमार्केड, पंढारकाडा, घाटंजी, पटोडा (ख) के शहरों के नजदीक हैं।

यह जगह नांदेड जिले और आदिलाबाद जिले की सीमा में है। आदिलबाद जिला तालामादुगु इस जगह की ओर पूर्व है। यह तेलंगाना राज्य सीमा के नजदीक है।

पटोडा की जनसांख्यिकी (ख)

अंधे यहाँ स्थानीय भाषा है।

पटोडा में राजनीति (ख)

बीजेपी, एनसीपी, आईएनसी, एसएचएस इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।

पटोडा के पास मतदान केंद्र / बूथ (ख)

1) सवाना 

2) खडका 

3) खराबी 

4) सुकाली

5) एगी

उम्मेद विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2014  राजेंद्र वामन नजर्दन बीजेपी 901 9 0 48576 खड़से विजयराव यादवराव कांग्रेस 41614

2009  खड़ेज विजयराव यादवराव कांग्रेस  66882 7375 राजेंद्र वामन नजर्धन बीजेपी 59507

2004  इंगल उत्तम रामगोजी बीजेपी 52143, 14009  देवसरकर अनंत (एससी) 37234

1999  अनंतराव अपाराओ 40668, 3478 प्रकाश पाटिल देवासकर एनसीपी 37190

1995 इंगले उत्तराराव राघोजी बीजेपी 44826, 16578  अनंतराव देवसरकर कांग्रेस  28248

1990  देवसरकर प्रकाश पाटिल जेडी 47351, 9765 देशमुख बालासाहेब विठलराव कांग्रेस  37586

1985  देशमुख भीमराव अपाराओ कांग्रेस  41236, 5144 देवसरकर अनंतराव अपाराओ आईसीएस  36092

1980  देशमुख त्रिंबकराव गोपालराव कांग्रेस  40699,   10817 देवसरकर अनंतराव अपाराओ  29882

1978  देवसरकर अनंतराव अपाराओ कांग्रेस 34805, 9002 जहांगीदार एम अमानुल्ला एम इबुदुल्ला जेएनपी  25803

1972  माने शंकरराव अजजी कांग्रेस 3158 9 9414 रघुनाथ अनंत देशमुख 22175

1967  एस ए माने कांग्रेस  28402, 1962 के। ए। देवसरकर 8840

1962  रामचंद्र नामदेव शिंगंकर इंक 27748 180 9 5 विश्वकर्मा सुकाजी कंबले 9653

पटोडा कैसे पहुंचे (ख)

रेल द्वारा

किनवत रेल वे स्टेशन, अंबाड़ी रेल वे स्टेशन पटोडा (ख) के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। किनवत रेलवे स्टेशन (किनवत के नजदीक), अंबाड़ी रेल वे स्टेशन (किनवाट के नजदीक) रेलवे स्टेशनों के नजदीक से पहुंचने योग्य रेलवे स्टेशन हैं। कैसे नांदेड रेल वे स्टेशन पटोडा (ख) के पास प्रमुख रेलवे स्टेशन 118 किलोमीटर है

रास्ते से

किनवत, भैंसा पटोडा (ख) से सड़क कनेक्टिविटी रखने वाले पटौदा (ख) के शहरों के नजदीकी हैं।

 

शहरों के नजदीक

आदिलबाद 42 किमी 

करीब 56 किमी 

पंढरकाडा 62 किमी 

घाटंजी 64 किलोमीटर 

 

तालुक के पास

Kinwat 0 किमी निकट

तलमादुगु 26 किमी निकट

तमसी 31 किमी निकट

बाज़ारहरूर 32 किमी 

 

एयर पोर्ट्स के पास

नांदेड एयरपोर्ट 116 किलोमीटर 

सोनेगांव हवाई अड्डे के पास 207 किमी

लातूर हवाई अड्डे 253 किलोमीटर

राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे 300 किमी

 

पर्यटक स्थलों के पास

हिंगोली 121 किलोमीटर 

वाशिम 134 किमी 

चंद्रपुर 136 किमी 

सेग्राम 144 किमी 

ताडोबा 164 किमी 

 

जिलों के पास

आदिलबाद 42 किमी 

यवतमाल 94 किमी 

नांदेड 118 किमी निकट

हिंगोली 121 किलोमीटर

 

रेलवे स्टेशन के पास

किनवट  रेल वे स्टेशन 3.9 किमी 

अंबररी रेलवे स्टेशन 7.7 किमी निकट

मुदखेड रेलवे स्टेशन 99 किलोमीटर 

बसार रेलवे स्टेशन 100 किलोमीटर 

विकास कार्य :

2019

सर छोटूराम जीवनी
सर छोटूराम का जन्म २४ नवम्बर १८८१ में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादाश्री रामरत्‍न के पास 10 एकड़ बंजर व बारानी जमीन थी। छोटूराम जी के पिता श्री सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।
आरंभिक शिक्षा
जनवरी सन् १८९१ में छोटूराम ने अपने गांव से 12 मील की दूरी पर स्थित मिडिल स्कूल झज्जर में प्राइमरी शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद झज्जर छोड़कर उन्होंने क्रिश्‍चियन मिशन स्कूल दिल्ली में प्रवेश लिया। लेकिन फीस और शिक्षा का खर्चा वहन करना बहुत बड़ी चुनौती थी उनके समक्ष। छोटूराम जी के अपने ही शब्दों में कि सांपला के साहूकार से जब पिता-पुत्र कर्जा लेने गए तो अपमान की चोट जो साहूकार ने मारी वो छोटूराम को एक महामानव बनाने के दिशा में एक शंखनाद था। छोटूराम के अंदर का क्रान्तिकारी युवा जाग चुका था। अब तो छोटूराम हर अन्याय के विरोध में खड़े होने का नाम हो गया था।
क्रिश्‍चियन मिशन स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के विरुद्ध श्री छोटूराम के जीवन की पहली विरोधात्मक हड़ताल थी। इस हड़ताल के संचालन को देखकर छोटूराम जी को स्कूल में 'जनरल रोबर्ट' के नाम से पुकारा जाने लगा। सन् 1903 में इंटरमीडियेट परीक्षा पास करने के बाद छोटूराम जी ने दिल्ली के अत्यन्त प्रतिष्‍ठित सैंट स्टीफन कालेज से १९०५ में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्‍त की। छोटूराम जी ने अपने जीवन के आरंभिक समय में ही सर्वोत्तम आदर्शों और युवा चरित्रवान छात्र के रूप में वैदिक धर्म और आर्यसमाज में अपनी आस्था बना ली थी।
सन् 1905 में छोटूराम जी ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन् 1907 तक अंग्रेजी के हिन्दुस्तान समाचारपत्र का संपादन किया। यहां से छोटूराम जी आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए।
प्रथम सेवा
झज्जर जिले में जन्मा यह जुझारू युवा छात्र सन् १९११ में आगरा के जाट छात्रावास का अधीक्षक बना। 1911 में इन्होंने लॉ की डिग्री प्राप्‍त की। यहां रहकर छोटूराम जी ने मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में आपने चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया। प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय में चौधरी छोटूराम जी ने रोहतक से 22,144 जाट सैनिक भरती करवाये जो सारे अन्य सैनिकों का आधा भाग था। अब तो चौ. छोटूराम एक महान क्रांतिकारी समाज सुधारक के रूप में अपना स्थान बना चुके थे। इन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें "जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल रोहतक" प्रमुख है। एक जनवरी 1913 को जाट आर्य-समाज ने रोहतक में एक विशाल सभा की जिसमें जाट स्कूल की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया जिसके फलस्वरूप 7 सितम्बर 1913 में जाट स्कूल की स्थापना हुई।
वकालत जैसे व्यवसाय में भी चौधरी साहब ने नए ऐतिहासिक आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, छल-कपट से दूर रहना, गरीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद्‍व्यवहार करना, अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया।
इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चौधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। इन्हीं दिनों 1915 में चौधरी छोटूराम जी ने 'जाट गजट' नाम का क्रांतिकारी अखबार शुरू किया जो हरयाणा का सबसे पुराना अखबार है, जो आज भी छपता है और जिसके माध्यम से छोटूराम जी ने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर एक सारगर्भित दर्शन दिया था जिस पर शोध की जा सकती है। चौधरी साहब ने किसानों को सही जीवन जीने का मूलमंत्र दिया। जाटों का सोनीपत की जुडिशियल बैंच में कोई प्रतिनिधि न होना, बहियों का विरोध, जिनके जरिये गरीब किसानों की जमीनों को गिरवी रखा जाता था, राज के साथ जुड़ी हुई साहूकार कोमों का विरोध जो किसानों की दुर्दशा के जिम्मेवार थे, के संदर्भ में किसान के शोषण के विरुद्ध उन्होंने डटकर प्रचार किया।
स्वाधीनता संग्राम
चौ. छोटूराम ने राष्‍ट्र के स्वाधीनता संग्राम में डटकर भाग लिया। १९१६ में पहली बार रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और चौ. छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे जिले में चौधरी छोटूराम का आह्वान अंग्रेजी हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेजों ने बहुत 'भयानक' करार दिया। फलःस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्‍नर ने तत्कालीन अंग्रेजी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, खून की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेजों के हाथ कांप गए और कमिश्‍नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।
चौधरी छोटूराम, लाला श्याम लाल और उनके तीन वकील साथियों, नवल सिंह, लाला लालचंद जैन और खान मुश्ताक हुसैन ने रोहतक में एक ऐतिहासिक जलसे में मार्शल के दिनों में साम्राज्यशाही द्वारा किए गए अत्याचारों की घोर निंदा की। सारे इलाके में एक भूचाल सा आ गया। अंग्रेजी हुकमरानों की नींद उड़ गई। चौधरी छोटूराम व इनके साथियों को नौकरशाही ने अपने रोष का निशाना बना दिया और कारण बताओ नोटिस जारी किए गए कि क्यों न इनके वकालत के लाइसेंस रद्द कर दिये जायें। मुकदमा बहुत दिनों तक सैशन की अदालत में चलता रहा और आखिर चौधरी छोटूराम की जीत हुई। यह जीत नागरिक अधिकारों की जीत थी।
अगस्त 1920 में चौ. छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि चौधरी साहब गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आजादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाए। कुछ बातों पर वैचारिक मतभेद होते हुए भी चौधरी साहब महात्मा गांधी की महानता के प्रशंसक रहे और कांग्रेस को अच्छी जमात कहते थे। चौ. छोटूराम ने अपना कार्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब तक फैला लिया और जाटों का सशक्त संगठन तैयार किया। आर्यसमाज और जाटों को एक मंच पर लाने के लिए उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्द और भटिंडा गुरुकुल के मैनेजर चौधरी पीरूराम से संपर्क साध लिया और उसके कानूनी सलाहकार बन गए।
सन् १९२५ में राजस्थान में पुष्कर के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन् 1934 में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें १०००० जाट किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, महर्षि दयानन्द के सत्यार्थ प्रकाश के श्‍लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम भारतवर्ष की राजनीति के स्तम्भ बन गए।
पंजाब में रौलट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया।
एक तरफ गांधी जी का असहयोग आंदोलन था तो दूसरी ओर प्रांतीय स्तर पर चौधरी छोटूराम और चौ. लालचंद आदि जाट नेताओं ने अंग्रेजी हुकूमत के साथ सहयोग की नीति अपना ली थी। पंजाब में मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार लागू हो गए थे, सर फ़जले हुसैन ने खेतिहर किसानों की एक पार्टी जमींदारा पार्टी खड़ी कर दी। चौ. छोटूराम व इसके साथियों ने सर फ़जले हुसैन के साथ गठबंधन कर लिया और सर सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया। तब से हरयाणा में दो परस्पर विरोधी आंदोलन चलते रहे। चौधरी छोटूराम का टकराव एक ओर कांग्रेस से था तथा दूसरी ओर शहरी हिन्दु नेताओं व साहूकारों से होता था।
चौधरी छोटूराम की जमींदारा पार्टी किसान, मजदूर, मुसलमान, सिख और शोषित लोगों की पार्टी थी। लेकिन यह पार्टी अंग्रेजों से टक्कर लेने को तैयार नहीं थी। हिंदू सभा व दूसरे शहरी हिन्दुओं की पार्टियों से चौधरी छोटूराम का मतभेद था। भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1920 में आम चुनाव कराए गए। इसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया और चौ. छोटूराम व लालसिंह जमींदरा पार्टी से विजयी हुए। उधर 1930 में कांग्रेस ने एक और जाट नेता चौधरी देवीलाल को चौ. छोटूराम की पार्टी के विरोध में स्थापित किया। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत सीमित लोकतंत्र के चुनाव 1937 में हुए। इसमें 175 सीटों में से यूनियनिस्ट पार्टी को 99, कांग्रेस को केवल 18, खालसा नेशनलिस्ट को 13 और हिन्दु महासभा को केवल 12 सीटें मिली थीं। हरयाणा देहाती सीट से केवल एक प्रत्याशी चौधरी दुनीचंद ही कांग्रेस से जीत पाये थे।
चौधरी छोटूराम के कद का अंदाजा इस चुनाव से अंग्रेजों, कांग्रेसियों और सभी विरोधियों को हो गया था। चौधरी छोटूराम की लेखनी जब लिखती थी तो आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख जाट गजट में छपे। 1937 में सिकन्दर हयात खान पंजाब के पहले प्रधानमंत्री बने और झज्जर के ये जुझारू नेता चौ. छोटूराम विकास व राजस्व मंत्री बने और गरीब किसान के मसीहा बन गए। चौधरी छोटूराम ने अनेक समाज सुधारक कानूनों के जरिए किसानों को शोषण से निज़ात दिलवाई।
महत्वपूर्ण योगदान साहूकार पंजीकरण एक्ट - १९३८
यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया। गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट - 1938 यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्‍त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया। कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम - 1938 यह अधिनियम 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई। व्यवसाय श्रमिक अधिनियम - 1940 यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्‍ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी। कर्जा माफी अधिनियम - 1934 यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी। इस कानून के तहत अपीलकर्ता के संदर्भ में एक दंतकथा बहुत प्रचलित हुई थी कि लाहौर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सर शादीलाल से एक अपीलकर्ता ने कहा कि मैं बहुत गरीब आदमी हूं, मेरा घर और बैल कुर्की से माफ किया जाए। तब न्यायाधीश सर शादीलाल ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे कानून बनाता है, उसके पास जाओ और कानून बनवा कर लाओ। अपीलकर्ता चौ. छोटूराम के पास आया और यह टिप्पणी सुनाई। चौ. छोटूराम ने कानून में ऐसा संशोधन करवाया कि उस अदालत की सुनवाई पर ही प्रतिबंध लगा दिया और इस तरह चौधरी साहब ने इस व्यंग्य का इस तरह जबरदस्त उत्तर दिया। मोर के शिकार पर पाबंधी चौधरी छोटूराम की देन चौ० छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के खिलाफ अनेक लेख लिखे। कोर्ट मे उनके विरुद्ध मुकदमें लड़े व जीते | मोरबचाओ ‘ठग्गी के बाजार की सैर’, ‘बेचार जमींदार, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना, स्वाभिमानी भावना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया। इन लेखों द्वारा किसान को धूल से उठाकर उनकी शान बढ़ाई। महाजन और साहूकार ही नहीं, अंग्रेज अफसरों के विरुद्ध भी चौ० छोटूराम जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाते थे। अंग्रेजों द्वारा बेगार लेने और किसानों की गाड़ियां मांगने की प्रवृत्ति के विरोध में आपने जनमत तैयार किया था। गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोर का शिकार करते थे। लोगों ने उसे रोकना चाहा परन्तु ‘साहब’ ने परवाह नहीं की। जब उनकी शिकायत चौ० छोटूराम तक पहुंची तो आपने जाट गजट में जोरदार लेख छापे, जिनमें अन्धे, बहरे, निर्दयी अंग्रेज के खिलाफ लोगों का क्रोध व्यक्त किया गया। मिस्टर इलियस्टर ने कमिश्नर और गवर्नर से शिकायत की। जब ऊपर से माफी मांगने का दबाव पड़ा तो चौ० छोटूराम ने झुकने से इन्कार कर दिया। अपने चारों ओर आतंक, रोष, असन्तोष और विद्रोह उठता देख दोषी डी.सी. घबरा उठा और प्रायश्चित के साथ वक्तव्य दिया कि वह इस बात से अनभिज्ञ था कि “हिन्दू मोर-हत्या को पाप मानते हैं”। अन्त में अंग्रेज अधिकारी द्वारा खेद व्यक्त करने तथा भविष्य में मोर का शिकार न करने के आश्वासन पर ही चौ० छोटूराम शांत हुए रोहतक जिले के डी.सी. लिंकन (Lincoln E.H.I.C.S - 6 Nov. 1931 to 4 April 1933; 31 Oct. 1933 to 22 March 1934) ने सन् 1933 में ‘जाट गजट’ के लेखों के विषय में एक लेख की ओर अम्बाला कमिश्नरी के अंग्रेज़ अफसर को ध्यान दिलाया - “राव बहादुर चौधरी छोटूराम ने जाट जाति के उत्थान के लिये जाट गजट प्रचलित किया था। किन्तु यह तो जमींदार पार्टी का कट्टर समर्थक बन गया है और सरकारी कर्मचारियों पर दोष लगाकर उनको लज्जित कर रहा है, यह ब्रिटिश सरकार का कट्टर विरोधी बन चुका है , पर यह प्रायः कांग्रेस के अभिप्राय जैसे विचार प्रकट करता है।” (C.F.D.C. Rohtak, 12/40, M.R. Sachdev to Sheepshanks, Comm. Ambala Div. 16 Sept. 1933) स्वतंत्रता के करीब 1942 में सर सिकन्दर खान का देहांत हो गया और खिज्र हयात खान तीवाना ने पंजाब की राजसत्ता संभाली। सर छोटूराम अब्दुल कलाम आजाद की नीतियों के समर्थक थे। दोनों ही चुनौती बन गई थीं। पहले और दूसरे महायुद्ध में चौधरी छोटूराम द्वारा कांग्रेस के विरोध के बावजूद सैनिकों की भर्ती से अंग्रेज बड़े खुश थे। अंग्रेजों ने हरयाणा के इलाके की वफादारियों से खुश होकर हरयाणा निवासियों को वचन दिया कि भाखड़ा पर बांध बनाकर सतलुज का पानी हरयाणा को दिया जाएगा। सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। सन् 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य चौ. छोटूराम का 9 जनवरी 1945 को देहावसान हो गया। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी सर छोटूराम के बलिदान को युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी