अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : मा.तनवीर खान
पद : सभासद
वॉर्ड : 17 घेर पीपल वाला
पालिका/परिषद रामपुर
ज़िला : रामपुर
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017= 3020/1797 वोट
सम्मान :
Next month

विवरण :

introduction

Name: Honorable Tanveer Khan

Designation: Member

Ward no. : 17 Gher Peepal Wala 

Municipality Council: Rampur

District: Rampur

State: Uttar Pradesh

Eligibility: Illiterate

Mobail No: 9412586566

Support: NIRDALy

the residence:

Language : Hindi and Urdu 

Current Time 07:30 PM 

Date: Friday , Jan 04,2019 (IST) 

Telephone Code / Std Code: 0595 

Vehicle Registration Number: UP-22 

RTO Office: Rampur

Rampur Municipality Council: Chairman Fatima Jabibi (SP) Contact Number:9837464814

Assembly constituency : Rampur assembly constituency 

Assembly MLA : Mohammad Azam Khan (BJP) Contact Number: 9415607314

Lok Sabha constituency : Rampur parliamentary constituency 

Parliament MP : Dr. Nepal Singh (BJP) Contact Number: 09415905901

वार्ड न. 17 - घेर पीपल वाला सभासद संक्षिप्त जीवनी 

वार्ड सभासदों का चयन करने के लिए हर पांच साल में चुनाव होते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों को नामित करते हैं और संबंधित वार्ड के लोग अपने वार्ड के लिए सभासद का चुनाव करने के लिए चुनाव के दौरान अपना वोट डालते हैं। नगर पालिका वार्ड न. 17 - घेर पीपल वाला में कुल 6401 मतदाता हैं,  निकाय चुनाव 2017 में निर्दलीय समर्थित नगर पालिका सभासद पद पर माननीय तनवीर खां जी ने कुल पड़े मत संख्या 3020 में से (1797)  मत प्राप्त कर 

2 = ज़मीर खाँ = निर्दलीय  (1081) को 716 मतों से हराकर चुनाव जीता, 

रामपुर नगर पालिका के बारे में 

रामपुर नगर पालिका नागरिक बुनियादी ढांचे और प्रशासन के लिए जिम्मेदार नगर निगम है। संगठन, संक्षेप में,आरएमसी के रूप में जाना जाता है। यह नागरिक प्रशासनिक निकाय शहर की स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पार्कों जैसी अन्य सार्वजनिक सेवाओं का प्रबंधन करता है। आमतौर पर यह एक शहर, कस्बे या गांव, या उनमें से छोटे समूह रूप में होता है। में नगरपालिका अध्यक्ष ही प्रशासनिक अध्यक्ष होता है। वर्तमान नगर पालिका परिषद् में कुल जिसमें 43 वार्ड और 256160 मतदाता हैं,

निकाय चुनाव 2017 में नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष पद पर समाजवादी पार्टी समर्थित माननीय फात्मा जबी ने कुल पड़े मत संख्या 110212 में से (44991) मत पाकर भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार 

2 - दीपा गुप्ता = भारतीय जनता पार्टी (25284) को 19707 मतों से हराकर चुनाव जीता 

3- रेशमा बी = निर्दलीय (11909) मत प्राप्त कर जमानत जब्त तीसरे  स्थान पर रहे । वर्तमान अध्यक्षा फात्मा जबी हैं ,

रामपुर का इतिहास

रामपुर लगभग 3.3 लाख की आबादी के साथ रामपुर  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले में स्थित एक शहर एवं नगर पालिका है। यह मुरादाबाद एवं बरेली के बीच में पड़ता है। रामपुर नगर उपर्युक्त ज़िले का प्रशासनिक केंद्र है तथा कोसी के बाएँ किनारे पर स्थित है। रामपुर नगर में उत्तरी रेलवे का स्टेशन भी है। रामपुर का चाकू उद्योग प्रसिद्ध है। चीनी, वस्त्र तथा चीनी मिट्टी के बरतन के उद्योग भी नगर में हैं। रामपुर नगर में अरबी भाषा का एक महाविद्यालय है। रामपुर क़िला, रामपुर रज़ा पुस्तकालय और कोठी ख़ास बाग़ रामपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। रामपुर जगह का कुल क्षेत्रफल 2367 वर्ग किलोमीटर है। रामपुर की स्थापना नवाब फैजुल्लाह खान ने की थी। उन्होंने 1774-1794 तक यहाँ शासन किया।रामपुर नगर पालिका परिषद का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 20 किमी 2 है। शहर का जनसंख्या घनत्व 16105 व्यक्ति प्रति किमी 2 है। शहर में 43 वार्ड हैं, उनमें से रामपुर वार्ड नंबर 39 सबसे अधिक आबादी वाला वार्ड है और लगभग 14 हजार की आबादी वाला रामपुर वार्ड नंबर 32 सबसे कम आबादी वाला वार्ड 5483 है।

निकटतम रेलवे स्टेशन रामपुर है जो यहाँ से 3 किमी दूर है। रामपुर उप जिला प्रमुख चौथ है और शहर से दूरी 3 किमी है। शहर का जिला प्रमुख क्वार्टर रामपुर है जो 3 किमी दूर है। लखनऊ शहर का राज्य मुख्यालय है और यहाँ से 315 किमी दूर है। शहर की वार्षिक औसत वर्षा 430 मिमी है। यहाँ अधिकतम तापमान 45 ° C तक और न्यूनतम तापमान 5 ° C तक पहुँच जाता है।

जनसांख्यिकी

यह शहर लगभग 3.3 लाख लोगों का घर है, इनमें से लगभग 1.7 लाख (52%) पुरुष हैं और लगभग 1.6 लाख (48%) महिला हैं। पूरी आबादी का 95% सामान्य जाति से हैं, 4% अनुसूचित जाति से हैं और 0% अनुसूचित जनजाति से हैं। रामपुर नगर पालिका परिषद में बालकों की आयु (6 वर्ष से कम) 12% है, उनमें से 52% लड़के हैं और 48% लड़कियां हैं। शहर में लगभग 59 हजार घर हैं और हर परिवार में औसतन 6 व्यक्ति रहते हैं।

शहरों के पास

रामपुर 0 KM 

स्वार 27 KM 

शाहाबाद, रामपुर 30 KM 

मुरादाबाद 34 KM 

तालुकों के पास

रामपुर 0 KM 

सैदनगर 8 KM 

चामराँव 9 KM 

मुंडा पांडे 12 किमी 

एयर पोर्ट्स के पास

पंतनगर एयरपोर्ट 56 KM

मुजफ्फरनगर एयरपोर्ट 166 KM 

इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 212 KM 

देहरादून हवाई अड्डा 215 KM 

पर्यटक स्थलों के पास

मुरादाबाद 26 KM 

काशीपुर 51 KM 

रामनगर 74 KM 

काठगोदाम 80 KM

नैनीताल 85 KM 

जिले के पास

रामपुर 0 KM 

मुरादाबाद 26 KM 

उधम सिंह नगर 46 KM 

ज्योतिबा फुले नगर 61 KM 

रेल्वे स्टेशन के पास

रामपुर जंक्शन रेल मार्ग स्टेशन 4.2 KM 

मुंडा पांडे रेल मार्ग स्टेशन 9.3 KM 

बिलासपुर रोड रेल मार्ग स्टेशन 26 KM

रामपुर विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल

सपा, कांग्रेस, भाजपा, बसपा, जेडी, जेपी, JNP (SC) , LKD  रामपुर विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक दल हैं।

रामपुर विधानसभा क्षेत्र में मंडल।

चमराोन, शाहाबाद, रामपुर

रामपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012 मोहम्मद आज़म खान एसपी 95772 = 63269 डॉ। तनवीर अहमद खान कांग्रेस 32503

2007 मोहम्मद। आजम खान एसपी 53091 = 33372 अफरोज अली खान कांग्रेस  19719

2002 मोहम्मद। आजम खान एसपी 73920 = 37991 अफरोज अली खान कांग्रेस 35929 

1996 अफरोज अली खान कांग्रेस  69184 = 13906 मोहम्मद आजम खान एसपी 55278

1993  एम आज़म खान एसपी 40324 = 600 अफरोज़ अली खान जेडी 39724

1991  मोहम्मद आज़म खान जेपी 27318 = 2634 जोगेश चंद्र अरोड़ा भाजपा 24684

1989 मुहम्मद आज़म खान जेडी 44512 = 2946 अफरोज़ अली खान कांग्रेस  41566

1985 मोहम्मद आज़म खान LKD 33380 = 17013 अफ़रोज़ अली खान कांग्रेस  16367

1980 मोहम्मद। आज़म खान JNP (SC) 17815 = 1128 मंज़ूर अली खान 16687

1977 मंजूर अली खान उर्फ शन्नू खान कांग्रेस 35989 = 8353 मोहम्मद आज़म खान जेएनपी 27636

1974 मंज़ूर अली ख़ान अलियास शानू ख़ान कांग्रेस 18467 = 3466 हिमायत उल्लाह ख़ान मुल मुल्क 9001

1969  सैयद मुर्तजा अली खान कांग्रेस 29947 = 1816 रफत ज़मानी बेगम 28131

1967  ए। ए। खान एसडब्ल्यूए 46089 = 33419 आर। कुमार बीजेएस  12670

1962 किश्वर आरा बेगम कांग्रेस  25314 = 21523 फजलुल हक़ 3791

1957 असलम खान 17241 4826 फज़ल हक़ खान कांग्रेस  12415

1951  फ़ज़ल- उल- हक़ कांग्रेस  18570 = 13996 भूखन सरन एचएमएस  4574

नबावों का इतिहास 

1=फ़ैजुल्लाह ख़ान15 सितम्बर 1748 से 24 जूलाई १७९३ तक 
हाफ़िज़ रहमत ख़ान - Regent15 सितम्बर 1748 से23 अप्रैल 1774 तक 
2=मुहम्मद अली ख़ान वहादूर 24 जूलाई १७९३ से 11 अगस्त 1793 तक 
3=गुलाम मुहम्मद ख़ान वहादूर11 अगस्त 1793 से 24 अक्टूबर 1794 तक 
4=अहमद अली ख़ान वहादूर24 अक्टूबर 1794 से  5 जूलाई 1840 तक 
नसरउल्लाह ख़ान - Regent24 अक्टूबर 1794 से 1811तक 
5=मुहम्मद सैद ख़ान वहादूर5 जूलाई 1840से  1 अप्रैल 1855 तक 
6=युसुफ अली ख़ान वहादूर   1 अप्रैल 1855 से 21 अप्रैल 1865 तक 
7=कल्ब अली ख़ान वहादूर21 अप्रैल 1865 से 23 मार्च 1887 तक 
8=मुहम्मद मूस्ताक अली ख़ान वहादूर 23 मार्च 1887से 25 फरबरी 1889 तक 
9=हामिद अली ख़ान वहादूर25 फरबरी 1889से 20 जून 1930 तक 

विकास कार्य :

vikas kary Suchi abhi uplabdh nahi hui hai

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी