अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : वहीद महमूद जुबैरी
पद : अध्यक्ष
वॉर्ड : 00
पालिका/परिषद मारहरा
ज़िला : एटा
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : समाजवादी पार्टी
चुनाव : 2017= 10826/4565 वोट
सम्मान :
NA

विवरण :

introduction 
Name: Honble Waheed Mahmud Zubairi
Designation: Chairman
Municipality Council: Marehra 
District : Etah 
State : Uttar Pradesh 
Eligibility : Graduates
Mobail No: 9412511125
Support : Samajwadi Party
Division : Aligarh 
Language : Hindi and Urdu 
Current Time 07:19 PM  
Date: Sunday , Jul 14,2019 (IST)  
Vehicle Registration Number:UP-82 
RTO Office : Etah 
Telephone Code / Std Code: 05744 
Assembly constituency : Marhara assembly constituency 
Assembly MLA : virendra (BJP) 9412490792, 
Lok Sabha constituency : Etah parliamentary constituency 
Parliament MP : Rajveer Singh (Raju Bhaiya) 
Serpanch Name : 
Pin Code : 207401 
Post Office Name : Marehara

नगर पालिका परिषद् मारहरा के बारे में
मेराहरा, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एटा जिले में एक शहर और एक नगर पालिका बोर्ड है।जिसको  25 वार्डों में विभाजित कर विकास कार्यों की रूप रेखा तैयार कर विकास कार्य किये जा रहे हैं , नगर पालिका परिषद् मारहरा में कुल 15868 मतदाता हैं, निकाय चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी समर्थित नगर पालिका अध्यक्ष  पद पर  वहीद महमूद जुबैरी जी ने कुल पड़े मत संख्या 10826 में से (4565) 43.56 मत पाकर बहुजन समाज पार्टी समर्थित उम्मीदवार 
2 - स्नोध कुमार  = बसपा  (2317) 22.11 को 2248  अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता 
3- मु0 राशिद = राष्ट्रीय ओलमा कौन्सिल (1947) 18.58  मत प्राप्त कर तीसरे  स्थान जमानत जब्त
4 - गौरव कुमार = भारतीय जनता पार्टी (1401) चौथे स्थान पर रहकर जमानत जब्त हो गयी 
शहर का इतिहास जाने 
इसको मारहरा शरीफ के रूप में जाना जाता है यह दुनिया भर से मुसलमानों के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद साहब के वंशजों की समाधि स्थल हैं और यहां पर उन की बहुत की चीज भी है जो प्रत्येक उर्स पर प्रदर्शित की जाती है,और मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है के यहां सात कूतुब की मजार एक साथ है है जो विश्व में और कहीं नहीं है, यहां से श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालु बरकाती केहलाते है, मारहरा भी अपने स्वादिष्ट आम के लिए मशहूर है। मोहल्लाह कम्बोह यहाँ का सबसे बड़ा मोहल्लाह है।यह  एक शांति पूर्ण शहर है जहां हिन्दू मुस्लिम सभी धर्मों के नागरिक एक दूसरे के साथ सद्भाव और स्नेह है। 
जनसांख्या
सन् २०११ की जनसांख्या के अनुसार मारहरा की कुल जनसांख्या ४७,७७२ है। जिस्में से ५३% पुरुष् हैं और ४७% महिलायें हैं। मारहरा की एक औसत साक्षरता दर ६३% है।
मारेहरा, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा जिले के मारेहरा ब्लॉक में एक शहर है। यह अलीगढ़ मंडल का है। यह जिला मुख्यालय क्वार्टर से उत्तर की ओर 25 KM की दूरी पर स्थित है। यह एक ब्लॉक हेड क्वार्टर है।
मारेहरा पिन कोड 207401 है और डाक प्रधान कार्यालय मारेहारा है।
सराय अहमद खान (2 KM), अहमदनगर बामनोई (2 KM), हयातपुर माफी (2 KM), महमूदपुर नगरिया (3 KM), फिरोज पुर सिलोनी (3 KM) मारेहरा के नजदीकी गांव हैं। मेराहरा उत्तर की ओर कासगंज ब्लॉक, पश्चिम की ओर सिकंदराराऊ ब्लॉक, पूर्व की ओर अमनपुर ब्लॉक, दक्षिण की ओर निधौली कलां ब्लॉक से घिरा हुआ है।
सिकंदरा राव, एटा, सोरों, सहावर पास के शहर मारेहरा हैं।
यह स्थान एटा जिले और कांशीराम नगर जिले की सीमा में है। कांशीराम नगर जिला कासगंज इस जगह की ओर उत्तर है। इसके अलावा यह अन्य जिले अलीगढ़ की सीमा में है।
हिंदी यहां की स्थानीय भाषा है।
कैसे मारहरा तक पहुंचें
रेल द्वारा
मारहरा रेल मार्ग स्टेशन, मारहरा रेल मार्ग स्टेशन, म्हारा को नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।
शहरों के पास
सिकंदरा राव 19 KM 
एटा 24 KM 
सोरोन 28 KM 
सहवार 30 KM 
तालुकों के पास
मारेहरा 7 KM 
कासगंज 7 KM 
सिकंदराराऊ 16 KM 
अमनपुर 19 KM 
एयर पोर्ट्स के पास
खेरिया एयरपोर्ट 98 KM 
ग्वालियर एयरपोर्ट 183 KM 
पंतनगर हवाई अड्डा 188 KM
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 190 KM 
पर्यटक स्थलों के पास
अलीगढ़ 56 KM 
आगरा 93 KM
वृंदावन 98 KM 
मथुरा 103 KM 
बुलंदशहर 114 KM 
जिले के पास
कांशीराम नगर 11 KM 
एटा 24 KM 
अलीगढ़ 57 KM 
महामाया नगर 69 किमी 
रेल्वे स्टेशन के पास
मरहरा रेल मार्ग स्टेशन 1.8 KM 
मरहरा रेल मार्ग स्टेशन 1.9 KM 
कासगंज जंक्शन रेल मार्ग स्टेशन 10 KM
हाथरस जंक्शन रेल मार्ग स्टेशन 49 KM 

मारेहरा में राजनीति जाने 
JS, PSP, SP, JaKP इस क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
मारहरा विधानसभा क्षेत्र में मंडल।
मारेहरा निधौली कलां सकिट शीतलपुर
मारहरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।
2012 = अमित गौरव SP 61827 = 22256 वीरेंद्र JaKP 39571
1962 = रघुबीर सिंह PSP 10744 = 1933 वीरेंद्र सिंह JS  8811

विकास कार्य :

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अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी